Wednesday, February 13, 2013

प्रेम दिवस

इस प्यर को मैं क्या नाम दूं
वेलेंटाइन डे या यूं कह लें कि प्रेम दिवस
प्यार करने का दिन या प्रेम के इजार करने का दिन या कुछ और?
मेरी समझ से परे....
आखिर प्यार तो प्यार होता है चाहे वह मां से हो,  भाई से या किसी और से!
प्रेम में प्रदर्शन या दिखावा करने की क्या जरूरत है। प्यार तो प्यर है बस प्यार!
कई दिनों से प्रेम दिवस का चिल्ल-पों सुनाई और दिखाई दे रहा है। फेसबुक पर या अखबारों में, वो भी एक खास तबके के बीच या यूं कह लें कि युवाओं में वो भी कस्बाई इलाकों की बनिस्बत शहरों नगरों में ज्यादा है।
आखिर प्रेम सिर्फ युवाओं को ही करना चाहिए या सबको यह सवाल भी मेरे जेहन में कई दिनों से कौंध रहा है। प्रेम दिवस होना चाहिए मैं भी इसके पक्ष में हूं और आज के परिवेश में इसकी सख्त जरूरत है मगर इसका मकसद सिर्फ चन्द लोगों को अपने निजी ख्यालात व इजहारात जाहिर करने की बजाय अवाम के अन्दर आपसी अखलाक पैदा करना हो। चन्द रोजा रिश्ता बनाने व उसका नाजायज इस्तेमाल करने के वास्ते एक लड़का व एक लड़की वेलेंटाइन-डे मनाये तो यह प्यार का मजाक उड़ाने के सिवा कुछ नहीं हो सकता। आज समाज को जरूरत है प्यार के बुनियादी मतलब समझने का। क्या कहता है प्यार? इसके जाने बिना इसका मजाक उड़ाना बेहद अफसोसनाक है। मीरा ने भी प्यार किया था, गोपियों को भी प्यार था मगर उन्हे किसी वेलेंटाइन-डे की दरकार नहीं थी!
आज जरूरत है प्यार को सच्चे दिल से अपनाने की, प्यार के सतरंगी फूल सबके दिलों में खिलाने की। प्यार के कोमल एहसासों को बिखेरने पुष्पित-पल्लवित करने का दिन अगर वेलेंटाइन-डे बने तो सार्थक होगा वर्ना सिर्फ और सिर्फ चोचलों व ढकोसलों से ज्यादा वेलेंटाइ-डे नही हो सकता।

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