मंगलवार 22 दिसम्बर को भोर में आसिफ एसएसबी की गाड़ी से घर पहुंचा। चिर निद्रा में लीन आसिफ किसी से बात नहीं कर सकता था, लोग उसके दीदार को बेकरार थें मगर वो तो उस सफर पर निकल गया था, जहां से लोग कभी नहीं आते। घर, गांव व इलाके के लोगों का गम से हाल बेजार था। दोस्त, अहबाब, समाजी व सियासी लोगों का मजमा था। अंतिम बिदाई देने वालों की आखें नम थीं। दिन में दो बजे आसिफ को लम्बे काफिले के साथ सबसे पहले कस्बा स्थित शहीद पार्क ले जाया गया। जहां जिला प्रशासन सहित विभागीय लोगों ने गार्ड आफ आनर दिया। इसके बाद जगनियां स्थित कब्रिस्तान में आसिफ को को सुपुर्द-ए-खाक किया गया। इस दौरान घर, परिवार, गांव के लोगों के साथ एसडीएम प्रदीप कुमार, सीओ भवनेश चिकारा, सपा के राष्ट्रीय सचिव व पूर्व विधायक मनोज कुमार सिंह डब्लू, सपा प्रवक्ता मनोज काका, पूर्व सैनिक अंजनी सिंह, राजेश यादव, विधायक प्रतिनिधि अन्नू सिंह, प्रधान प्रतिनिधि रामशरण यादव गुड्डू, नैढ़ी प्रधान अंसार अहमद, भाजपा जिला महामंत्री सुजीत जायसवाल, हसन खान, सुहेल खान जन्नत, रूस्तम खान, सत्यदेव यादव, सहित भारी संख्या में क्षेत्रीय लोग मौजूद रहे।
एसएसबी जवान आसिफ खानदेश सेवा के साथ समाज के लिए भी आसिफ कुछ कर गुजरने का माददा रखता था, गांव हो या दोस्त यार सबके लिए हमेशा खड़ा रहता। जब भी कोई उसे किसी मकसद के लिए पुकारता वो हाजिर रहता। बड़ों का सम्मान और छोटों से प्यार करना कोई उससे सीखे। कहते हैं अच्छे लोगों को ईश्वर जल्द अपने पास बूला लेता है। तकरीबन दो साल पहले ही आसिफ की शादी हुई थी, पत्नि और आठ महीने की छोटी बच्ची है। क्या उम्र ही थी उसकी। मुझे याद है नौकरी पाने से दो-तीन साल पहले आसिफ मेरे साथ लखनऊ के मोहिबुल्लापुर इलाके में दो दिन के लिए गया था। यह वही इलाका है जहां आसिफ का एक्सिडेंट हुआ। हम लोग दो दिन तफरीह किए, बेहद उत्साही व मनोरंजक स्वभाव का इंसान था। उसके जाने की खबर जब मुझे रात 11 बजे मिली तो मैं स्तब्ध हो गया। पूरी रात सो नहीं सका। यकी नही नहीं हुआ कि आसिफ हमें छोड़कर चला गया। अभी कुछ दिन पहले ही गांव के बाहर परती पर मिला था, अदब से सलाम किया। हालचाल हुआ।
अल्विदा मेरे भाई आसिफ... तेरा यूँ जाना खल गया!
यह कोई उम्र थी जाने की जो तुम यूँ मुंह मोड़ कर हमसे चले गए। अभी कुछ दिन पहले ही तो सलाम-बन्दगी हुई थी परती पर। हमें यकीन ही नहीं था कि यह मुलाकात आखिरी होगा। यूँ तो तुम उम्र में छोटे थे मगर जिम्मेदारी की बोझ सबसे ज्यादा तुम्हारे मजबूत कांधे पर ही था। मुझे आज भी याद है... जब तुम एसएसबी में भर्ती नहीं हुए थे, तो हम लोग अक्सर गांव के बाहर परती पर मिलते। सालों पहले एक बार मैं तुम्हे अपने साथ लखनऊ ले गया था, उसी इलाके में जहाँ तुमने जिंदगी की आखिरी सांस ली! मोहिबुल्लापुर में ही हम एक रात आई वर्ल्ड पत्रिका के मालिक डॉ. नफीस अहमद के यहां रुके थे, उनके साथ हमने लखनऊ की सैर भी किया। फिर तुम कुछ साल बाद नौकरी में चले गए, रास्ता अलहदा हो गया। आज तुम्हें याद कर आंखे नम हो गईं। आसिफ बेहद मिलनसार व्यक्तित्व का धनी था, सबको ऐसा भाई सरीखा पड़ोसी मिले। अल्लाह रब्बुल इज्जत तुम्हे जन्नतुल फिरदौस में आला मुकाम अता करें और घर वालों को सब्र-ए-जमील अता फरमाएं!
अब हर लम्हा तुम्हारे बिना सूना सा लगेगा,
अलविदा कहकर तुम्हारी यादों में जीना पड़ेगा।