Saturday, May 28, 2011

राजनीति

समाजवादी पार्टी में घमासान

चंदौली के सय्यदराजा विधानसभा में सपाई नाराज चल रहे हैं, वजह है यहाँ से बहरी उम्मीदवार को उतरना
पेश है इंडिया न्यूज़ हिंदी साप्ताहिक पत्रिका के 03 जून 2011 के अंक में छपा रिपोर्ट...

Monday, May 23, 2011

मुद्दा

बेमकसद एक शिक्षा...
उत्तर प्रदेश सरकार का एक प्रोग्राम जिससे फायदा की जगह नुकसान ही हो रहा हैमुस्लिम समाज के कल्याण की खातिर एक पहल जो ज़रूर हुयी मगर नाकामयाबइंडिया न्यूज़ साप्ताहिक पत्रिका के 27 मई 2011 के अंक में प्रकाशित यह रिपोर्टआपके हवाले...

एम अफसर खान सागर



Thursday, May 19, 2011

प्यार

मेरे पास माँ है...




माँ एक कोमल एहसास, माँ ज़िन्दगी की ख्वाब, माँ दुनिया की सबसे बड़ी नेमत
इन मुर्गी के बच्चों को जरा गौर से देखिये...
अपनी माँ से कैसे लिपटे हुए हैंऔर इस माँ ने अपने बच्चों को कैसे अपने ऊपर, अपने परों में छिपा रक्खा है
यही है माँ का अनूठा प्यार। सरे जहाँ की नेमतों में सबसे बड़ी नेमत है माँ का प्यार, इसी लिए लोग कहते हैं कि
मेरे पास माँ है, माँ...

मुनव्वर राना के शब्दों में...
जब भी कश्ती मेरी सैलाब में जाती है,
माँ दुआ करती हुयी ख्वाब में आजाती है

मुसीबत के दिनों में माँ हमेशा साथ रहती है,
पयम्बर क्या परेशानी में हिम्मत छोड़ सकता है

Friday, May 6, 2011

अकीदत के फूल


विजय मिश्र बुद्धिहीन पेशे से रेलवे में अधिशासी इंजीनियर हैं। इंजीनियर का काम होता है लोहे के छोटे-छोटे टुकड़ों को समेट कर उसको रेलवे लाइनों पर चलाना, या यूं मान लें कि निर्जीव लोहे के टुकड़ों में जान भरकर उसको दौड़ाना। मगर 28 फरवरी 2010 को उनके जीवन गाड़ी मानो थम सी गयी। कहावत है कि अच्छे लोगों को ईश्वर जल्द अपने पस बुला लेता है। मैट की परीक्षा सर्वोच्च अंक से पास होने के बावजूद इनका सबसे दुलारा व सबसे बड़ा पुत्र आलोक इस फानी दुनियां को अल्विदा कह गया। उसे क्या मालूम कि उसके जाने के बाद लोहों में जान पैदा करने वाला इंजीनियर निर्जीव सा हो जायेगा। वह क्या जानता है कि किसके सहारे जिन्दा रहेगा उसका परिवार? मृत्यु सत्य है क्योंकि मरने के बाद फिर जिन्दा होना है। बकौल एक शायर.....
मौत जिन्दगी का वक्फा है
यानि आगे चलेंगे दम लेकर।
इस नश्वर शरीर को त्यागने के बाद नया जीवन जरूर मिलेगा आलोक को मगर उस नवजीवन से इस बुद्धिहीन का क्या सरोकार। सब उजड़ने के बाद आलोक तुम्हारी यादें ही सहारा हैं वरना अब कौन हमारा है। तुम्हे याद करते हुए.....



चाहा जिसे हरदम रहे मेरे नजर के पास
दूर
वह इतना गया न लौटने की आस।

जिसकी
खुशी मेरे लिए की संजीवनी की काम

हाय
मेरी जिन्दगी आई ना उसके काम।

आरजू मिन्नत इबादत हर जगह सज्दा किया
नयन जल भर अंजलि आराध्य पद प्रच्छालन किया।
पुष्प श्रद्धा के शिवशक्ति पर अर्पित किया
मौन रह मैं स्नेह सरिता किनारे था खड़ा
पर तोड़ कर बंधन सभी हमसे किनारा कर लिया।

विकट है यह जिन्दगी
पर है काटना
दुःख छिपा अंतस्थली में
केवल
खुशी ही बांटना।

बोलना है अगर तो
बोलना
मीठे
या फिर रहकर मौन
कर प्रभु आराधना।

जो
स्मृति है शेष
ना तू उसका धारण कर
हो रहा जो घटित उस सत्य का वरण कर।
समय
के आगे नहीं चलती हमारी ना तुम्हारी

मोह
के बंधन बंधे हम सभी प्राणी अनाड़ी।

भोग अपना भोगना है हम सभी को अकेले
इसलिए अब तोड़ बंधन और दुनियां के झमेले।

कुछ भी मनुज का सोचना काम है आता नहीं
चाहे हम जितना वापस कोई आता नहीं।



चाह थी आखों में उसके ना कभी आंसू
ऐसा दिया कि अश्रू अब रूकते नहीं।
हर जगह मैं ढूढ़ता उसके सभी पदचिन्ह को
जगह
तो दिखाते सभी पर वह कहीं दिखता नहीं।


हर
कदम के आहटों पर आ रहा है नित कोई
सुन रहा पदचाप उसका पर अब तो वह आता नहीं।
छोड़कर
स्थूल अंग अनन्त में है खोगया

नीद
से मतभेद कल था, अब चीर निद्र सो गया।



विजय मिश्र बुद्धिहीन


असीम दुःख की इस घड़ी में विजय मिश्र बुद्धिहीन जो कि मेरी प्रेरण के श्रोत हैं, इनके तिल-तिल जलते मन के साथ संवेदना की गहराइयों से मैं इनके साथ हूं। ईश्वर से प्रार्थना और दुआ है कि इनको जिन्दगी की तल्खियों से महफूज रखे।

एम अफसर खान सागर