Thursday, June 9, 2011

ज़मीन की जंग

जागत रहीया भाय किसान,जायल चाहत बा सीवान

इतिहास गवाह है कि जमीन के लिए जाने कितने जंग हुए हैं। किसान के लिए जमीन मां का दर्जा रखती है। अगर उसकी मां पर आंच आता है तो वह मर-मिटने को तैयार रहता है। जमीन की जंग सिंगुर, भट्टा परसौल, ग्रेटर नोएडा से होते हुए चन्दौली के कटेसर गांव तक पहुंची है। हालांकि किसानो ने प्रशासन को एक माह की मोहलत जरूर दिया है मगर जंग खत्म होने के पूरे आसार नहीं हैं। बकौल रामलखन यादव, अध्यक्ष, किसान संघर्ष समिति कटेसर ‘‘अगर प्रशासन ने तय एक माह के अन्दर धारा- 4 6 का प्रकाशन नहीं रोका तथ पुनः भूमि अधिग्रहण चालू किया तो हम संघर्ष के लिए बाध्य होंगे। जान भले दे देंगे मगर एक इंच जमीन नहीं देंगें।’’ तकरीबन तीन माह पहले छिड़ी जमीन की जंग परवान चढ़ चुकी है तभी तो भूमि अधिग्रहण सीवान बेचैन किसान गांव में घूम कर आवाज देते हैंजागत रहीया भाय किसान, जायल चाहत बा सीवान
अन्नदाता पर संकट के बादल उस वक्त मण्डराना शुरू हुए जब वाराणसी विकास प्राधिकरण ने 16 अप्रैल 2011 को जारी फरमान में कहा कि कटेसर डोमरी गांव की 121 हेक्टेयर जमीन सांस्कृतिक नगरी (नई काशी) का निर्माण होगा जिसकी वजह से यहां जमीन की खरीद फरोख्त पर रोक लगाया जाता है। इस फरमान के बाद तो मानो अन्नदाता का आक्रोश चरम पर जा पहुंचा। विगत 24 अप्रैल से धरना-प्रदर्शन का जो दौर शुरू हुआ वो 29 मई को जर, जोरू और जमीन के पुराने फलसफे की तरफ जा पहुंचा। जमीन नहीं जान देंगे के उद्घोष के बाद किसान लामबन्द होकर 30 मई को आत्मदाह के लिए चिता सजाने लगे। अब बारी किसानों का था, किसान संघर्ष समिति, कटेसर ने जिला प्रशासन को अल्टिमेट जारी किया कि अगर 01 जून तक भूमि अधिग्रहण नहीं रूकता है तो किसान आत्मदाह करेंगे। फिर किसान आन्दोलन भट्टा परसौल की राह अख्तियार किया। आन्दोलन पर धीरे-धीरे सियासी रंग चढ़ना शुरू हुआ। सपा, भाजपा, कांग्रेस, भारतीय किसान यूनियन, भकपा माले, मजदूर किसान मजदूर संघ के नेता कटेसर पहुंचे।

जमीन के जंग का आगाज......
उत्तर प्रदेश का चन्दौली जनपद नक्सल प्रभावित जिले में शुमार किया जाता है। यहां लोगों के जीवन का सहारा कृषि है। जपनद को कभी धान का कटोरा कहा जाता था मगर प्राकृतिक संसाधनों में बदलाव प्रशासनिक उपेक्षा के चलते यहां के किसान दाने-दाने को मोहताज होते गये। नक्सलवाद यहां बढ़ा और अनेकों नक्सली वारदात हुए। अगर नक्सलवाद के जड़ में जाया जाए तो कहीं कहीं भूखा, पीडि़त प्रताडि़त किसान मजदूर राह भटके। कटेसर गांव की 121.935 एकड़ कास्त की जमीन पर अधिग्रहण का साया पिछले साल 16 जून को धारा-4 के प्रकाशन के बाद मण्डराना शुरू हुआ। इससे पुर्व गजट के प्रकाशन के अलावा भूमि अधिग्रहण की मुनादी करायी गयी। प्रक्रिया पूरा होने के बाद 30 जनवरी 2011 को भूमि अध्याप्ति अधिकारी को 10 करोड़ रूपये मुहैया कराया गया। भूमि अध्याप्ति विभाग ने 26 मार्च 2011 को धारा- 6 के प्रकाशन के लिए प्रस्ताव शासन को भेजा। शासन ने धारा- 6 के प्रशासन से पहले किसानों को मुआवजा देने के लिए 39 करोड़ रूपये की डिमाण्ड की। इसके लिए भूमि अध्याप्ति अधिकारी ने 02 फरवरी 2011 को वाराणसी विकास प्राधिकरण उपाध्यक्ष को पत्र भेजा। सांस्कृतिक नगरी के निर्माण लिए कटेसर के 550 किसानों की जमीन का अधिग्रहण होना है। तमाम निवेद फरियाद के बाद मामला नहीं बना तो किसान संर्घष समिति, कटेसर के बैनर तले किसान आन्दोलन के लिए लामबन्द हुए।

आरहा प्रशासनिक अमला धरनारत किसानों को मनाने कटेसर पहुंचा मगर नतीजा शिफर। 30 मई को जब जिलाधिकारी पहुंचे तो मामला गंभीर होता दिखा। लोगों के जेहन में भट्टा परसौल का मंजर ताजा हो गया। हालांकि भट्टा परसौल से नसीहत लेकर प्रशासन ने सुरक्षा का माकूल इंतजाम कर रखा था। जवान पहले पहुंचे, हुक्मरान बाद में। एकबारगी तो जवान और किसान आमने-सामने हो गये। किसानों के हाथ में हसिया, खुरपी, लाठी-फावड़ा जो जवान असलहों से लैस। किसनों ने जिलाधिकारी की एक सुनी और नारे लगाते रहे- जमीन नहीं जान देंगे। जिला प्रशासन अन्ततः मायूस वापस लौट गया। अब किसान आर-पार की लडाई के मूड में पहुंच गये। चितायें सज चुकी थीं, जमीन के लिए जान देना किसानों के लिए मामूली बात थी। बस इंतजार 01 जून का था। प्रशासन के हाथ-पांव फूलने लगे। पिछले तीन माह से लुका-छिपी खेल रहे प्रशासन को अंततः कटेसर के संघर्षरत किसानों के आगे झूकना पड़ा। पूर्व घोषण के मुताबिक सैकडो की संख्या में पुरूष, महिलाये बच्चे लाठी-डंडा, फावडा-कुदाल लेकर धरना स्थल पर अल्सुबह पहुंच गये। महिलाओं का जोश पुरूषों से कहीं कम था। दूसरी जानिब जिले के थानों से भारी मात्रा में फोर्स भी पहुंचने लगी। किसान आर-पार की जंग के लिए तैयार थें। जमीन बचाने का जज्बा, मौत से कहीं ज्यादा था। सजी चिता पर 60 साल के रामलखन तैयार बैठे। दूसरी जानिब युवा तैयार। बस इंतजार था तो अगली सुबह का। जय जवान, जय किसान। जागत रहा भाय किसान, जायल चाहत बा सीवान। के नारे फिजां में मुंजाए मान थें। मानों आज अन्नदाता एक नया इतिहास लिखने को अमादा था। आठ बजे एसडीएम राआसरे सीओ धरना स्थल पर पहुंच कर जिलाधिकारी चन्दौली विजय कुमार त्रिपाठी द्वारा प्रमुख सचिव आवास शहरी नियोजन को लिखे पत्र की प्रतिलिपी किसानों को सौंपा। पत्र में जिलाधिकारी ने घटनाक्रम का हवाला देते हुए धारा- 4 6 के प्रकाशन को निरस्त करने की संतुति की गयी। इसपर भी किसान मानने को तैयार नहीं थे फिर एसडीएम ने कहा कि एक माह के अन्दर र्कावाही पूरी हो जाएगी। चेतावनी देते हुए किसानों ने कहा कि भूमि अधिग्रहण समाप्त हुई तो आन्दोलन दोबारा शुरू होगा। चितााओं की लकड़ीया प्रशासन ने अपनी गाडी में भरकर वापस गये। किसान एकता जिन्दाबाद के नारे चारो जानिब गूंज उठे।

भट्टा परसौल की नसीहत और कटेसर की जंग....

शाख के वो पत्ते नहीं जो हवा से टूट जाए हम,
और आंधियों से कह दो कि अपनी औकात में रहे।
कटेसर के किसानों ने इसी जज्बे से संघर्ष की एक नई इबारत लिख दी। इबारत एकजुटता की, संघर्षशीलता की और इबारत लिखी सिर उठा के जीने की। आप चाहे इसे भट्टा परसौल की नसीहत कहें, ग्रेटर नोएडा में अधिग्रहण रद्द करने के कोर्ट के फैसले से मिली प्ररणा या फिर जीवन-मरण से जुड़े सवालों से जुझने कर जज्बा। शायद इसी जज्बे ने प्रशासन को बैकफुट पर ला दिया। आनन-फानन में सरकार ने नयी भूमी अधिग्रहण नीति का एलान किया।

अगर देखा जाए तो कटेसर गांव की कुल आबादी दस हजार है तथा यहां के लोगों की जरिया--मास खेती है। अन्य जगहों की तरह यहां के लोगों में भी मतभेद हैं। पट्टीदारी का विवाद तो राजनीतिक प्रतिद्वंदिता भी। मगर जमीन के मुद्दे पर जान देने के लिए सब एकजुट हैं। क्या हिन्दु क्या मुसलमान। वर्तमान प्रधान रामफल तो पूर्व प्रधान रामलखन में चुनावी प्रतिद्वंदिता जरूर है मगर आन्दोलन में हमराह। क्या विजय यादव क्या सोहराब मियां सबका मकसद एक कैसे बचे जमीन। पुलिस लाठी-गोली चलाएगी तो चलाए हम तैयार हैं। आन्दोलन का जुनून लोगों में ऐसा था कि पौ फटते ही बड़ी संख्या में पुरूष, महिलाएं बच्चे धरना स्थल पर डट जाते। जंग का आगाज जीत से भले हो मगर बिना शोर शराबा के। जमीन बचाने और फांकाकशी की आशंका के बादल छटने के आसार ने गांव के लोगों में एक नई उर्जा का संचार कर दिया। संगठन की शक्ति का मुजाहिरा कहें या भट्टा परसौली की नसीहत, कटेसर की जंग के आगे प्रशासन बैकफुट पर आगया।

राख की ढ़ेर में अभी चिंगारी बाकी है...


कटेसर के किसानों ने प्रशासन को भले ही एक माह का मोहलत दे दिया हो मगर जब तक भूमि अधिग्रहण का मामला पूरी तरह समाप्त नहीं हो जाता वे चैन से रहने वाले नहीं हैं। किसान संघर्ष समिति के अध्यक्ष रामलखन बताते हैं कि किसान किसी भी कीमत पर जमीन नहीं देंगे चाहे जान भी देना पड़े। एक सवाल के जवाब में उन्होने कहा कि कोई अधिग्रहण नीति आवे और कितना भी मुआवजा मिले एक इंच जमीन नही दिया जाएगा।
हमारी सिर्फ एक मांग है, धारा-4 6 का प्रकाशन निरस्त हो। रामलखन बताते हैं कि अगर प्रशासन एक माह मे अधिग्रहण रद्द नहीं करता है तो किसान पुनः चिता सजा कर आत्मदाह करने पर मजबूर होंगे। सोहराब बचउ, राबृक्ष, संग्राम सिंह सहित सैकडों किसानों के सामने भूमिहीन होने का संकट था जो फिलहाल टल गया है। अगर सरकार कटेसर में सांस्कृतिक नगरी बनाने के फैसले से पीछे नहीं हटती है तो किसान जान की किमत पर जीमन बचाने के लिए तैयार हैं।

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