Tuesday, December 22, 2020

अल्विदा आसिफ

राजकीय सम्मान के साथ एसएसबी जवान आसिफ सुपुर्द-ए-खाक
 
धानापुर शहीद पार्क में आसिफ को राजकीय सम्मान देते एसएसबी के जवान।

उत्तर प्रदेश के चन्दौली जनपद के धानापुर निवासी सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) के जवान आसिफ खान (28 वर्ष) पु़त्र इसरार खान की सड़क हादसे में रविवार 20 दिसम्बर 2020 को लखनऊ के टेढ़ी पुलिया के पास रोड एक्सिडेंट में मौत हो गई। आसिफ की पोस्टिंग लखनऊ के मोहनलाल गंज में थी। सोमवार को तड़के जब आसिफ के मौत की खबर लोगों को मिली तो पूरे इलाके में मातम सा छा गया। परिवार वालों का रो-रो कर बुरा हाल हो गया। धानापुर पठानटोली स्थित उनके आवास पर शोक व्यक्त करने वालों का हुजूम इकट्ठा हो गया। चार भाई में आसिफ तीसरे नम्बर पर थें, और परिवार का पूर बोझ उनके कंधों पर ही था। मिलनसार व्यक्तित्व के धनि आसिफ लोगों के आंखों का तारा था। देशभक्ति के जज्बे से ओत-प्रोत आसिफ पढ़ाई के दोरान ही देश सेवा के लिए तैयारी करने लगा था। जिन्दगी के उसका एक ही सपना था देश के लिए कुछ कर गुजरना। हादसों से मानों आसिफ का याराना था, उनके बड़े भाई मोहसिन खान बताते हैं कि जम्मू में पोस्टिंग के दारान उनकी गाड़ी सौ फिट गहरी खाई में जा गिरी थी, जिसमें वो गम्भीर रूप से घायल हो गये थे। दूसरे हादसें में उनके कमर में काफी चोटें आईं थी, जिसका आपरेशन भी हुआ था। फिर भी उनके जज्बे में कोई कमी नहीं आयी थी। 
 

                                  धानापुर शहीद पार्क में आसिफ के अंतिम विदाई में उमड़ा जनसैलाब।

मंगलवार 22 दिसम्बर को भोर में आसिफ एसएसबी की गाड़ी से घर पहुंचा। चिर निद्रा में लीन आसिफ किसी से बात नहीं कर सकता था, लोग उसके दीदार को बेकरार थें मगर वो तो उस सफर पर निकल गया था, जहां से लोग कभी नहीं आते। घर, गांव व इलाके के लोगों का गम से हाल बेजार था। दोस्त, अहबाब, समाजी व सियासी लोगों का मजमा था। अंतिम बिदाई देने वालों की आखें नम थीं। दिन में दो बजे आसिफ को लम्बे काफिले के साथ सबसे पहले कस्बा स्थित शहीद पार्क ले जाया गया। जहां जिला प्रशासन सहित विभागीय लोगों ने गार्ड आफ आनर दिया। इसके बाद जगनियां स्थित कब्रिस्तान में आसिफ को को सुपुर्द-ए-खाक किया गया। इस दौरान घर, परिवार, गांव के लोगों के साथ एसडीएम प्रदीप कुमार, सीओ भवनेश चिकारा, सपा के राष्ट्रीय सचिव व पूर्व विधायक मनोज कुमार सिंह डब्लू, सपा प्रवक्ता मनोज काका, पूर्व सैनिक अंजनी सिंह, राजेश यादव, विधायक प्रतिनिधि अन्नू सिंह, प्रधान प्रतिनिधि रामशरण यादव गुड्डू, नैढ़ी प्रधान अंसार अहमद, भाजपा जिला महामंत्री सुजीत जायसवाल, हसन खान, सुहेल खान जन्नत, रूस्तम खान, सत्यदेव यादव, सहित भारी संख्या में क्षेत्रीय लोग मौजूद रहे। 

                                                            एसएसबी जवान आसिफ खान
 

देश सेवा के साथ समाज के लिए भी आसिफ कुछ कर गुजरने का माददा रखता था, गांव हो या दोस्त यार सबके लिए हमेशा खड़ा रहता। जब भी कोई उसे किसी मकसद के लिए पुकारता वो हाजिर रहता। बड़ों का सम्मान और छोटों से प्यार करना कोई उससे सीखे। कहते हैं अच्छे लोगों को ईश्वर जल्द अपने पास बूला लेता है। तकरीबन दो साल पहले ही आसिफ की शादी हुई थी, पत्नि और आठ महीने की छोटी बच्ची है। क्या उम्र ही थी उसकी। मुझे याद है नौकरी पाने से दो-तीन साल पहले आसिफ मेरे साथ लखनऊ के मोहिबुल्लापुर इलाके में दो दिन के लिए गया था। यह वही इलाका है जहां आसिफ का एक्सिडेंट हुआ। हम लोग दो दिन तफरीह किए, बेहद उत्साही व मनोरंजक स्वभाव का इंसान था। उसके जाने की खबर जब मुझे रात 11 बजे मिली तो मैं स्तब्ध हो गया। पूरी रात सो नहीं सका। यकी नही नहीं हुआ कि आसिफ हमें छोड़कर चला गया। अभी कुछ दिन पहले ही गांव के बाहर परती पर मिला था, अदब से सलाम किया। हालचाल हुआ। 


अल्विदा मेरे भाई आसिफ... तेरा यूँ जाना खल गया!


यह कोई उम्र थी जाने की जो तुम यूँ मुंह मोड़ कर हमसे चले गए। अभी कुछ दिन पहले ही तो सलाम-बन्दगी हुई थी परती पर। हमें यकीन ही नहीं था कि यह मुलाकात आखिरी होगा। यूँ तो तुम उम्र में छोटे थे मगर जिम्मेदारी की बोझ सबसे ज्यादा तुम्हारे मजबूत कांधे पर ही था। मुझे आज भी याद है... जब तुम एसएसबी में भर्ती नहीं हुए थे, तो हम लोग अक्सर गांव के बाहर परती पर मिलते। सालों पहले एक बार मैं तुम्हे अपने साथ लखनऊ ले गया था, उसी इलाके में जहाँ तुमने जिंदगी की आखिरी सांस ली! मोहिबुल्लापुर में ही हम एक रात आई वर्ल्ड पत्रिका के मालिक डॉ. नफीस अहमद के यहां रुके थे, उनके साथ हमने लखनऊ की सैर भी किया। फिर तुम कुछ साल बाद नौकरी में चले गए, रास्ता अलहदा हो गया। आज तुम्हें याद कर आंखे नम हो गईं। आसिफ बेहद मिलनसार व्यक्तित्व का धनी था, सबको ऐसा भाई सरीखा पड़ोसी मिले। अल्लाह रब्बुल इज्जत तुम्हे जन्नतुल फिरदौस में आला मुकाम अता करें और घर वालों को सब्र-ए-जमील अता फरमाएं!


अब हर लम्हा तुम्हारे बिना सूना सा लगेगा,
अलविदा कहकर तुम्हारी यादों में जीना पड़ेगा।

 

Saturday, November 14, 2020

अभिमत

बिहार चुनाव में एआईएमआईएम के उभार से बेचैनी क्यों?




बिहार विधानसभा चुनाव-2020 में एआईएमआईएम ने सीमांचल के पांच सीटों पर जीत हासिल कर सेक्युरल दलों में बेचैनी पैदा कर यिा है तभी तो नतीजे आने के बाद सो-कॉल्ड सेकुलर जमातों और उनके हिमायतियों ने एआईएमआईएम नेता व सांसद असदुद्दीन ओवैसी पर वोट कटवा होने तोहमत लगाने की परम्परा को आगे बढ़ाते हुए लानत भेजने का काम बखूबी कर रहे हैं! भारतीय लोकतंत्र ने सभी राजनीतिक दलों को चुनाव लड़ने का अधिकार दे रखा है! जिसके तहत राष्ट्रीय व क्षेत्रीय दल राज्य विधानसभाओं व लोकसभा के लिए अपने उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारते हैं और जनता उन्हें चुनती है या खारिज कर देती है! ठीक उसी तरह इस बार बिहार विधानसभा चुनाव में राजनीतिक दलों ने प्रतिभा किया और जनता ने अपना फैसला वोट के जरिये सुनाया।
एनडीए गठबंधन को बहुमत मिलने के बाद विपक्ष और उसके हिमायती। एआईएमआईएम और उसके नेता को वोट कटवा और भाजपा का एजेंट की संज्ञा देते फिर रहे हैं! सवाल उठता है कि आखिर हर बार विपक्ष अपनी विफलता का ठीकरा असदुद्दीन ओवैसी पर ही क्यों फोड़ती है? आखिर असदुद्दीन ओवैसी ही भाजपा के एजेंट कैसे हो जाते हैं? पड़ताल करें तो आसानी से मालूम होगा कि एआईएमआईएम के चुनाव लड़ने मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण से इनकी दाल नहीं गल पाती है। अगर बात सेकुलरिज्म की करें तो 2015 के चुनाव में नीतीश कुमार के जेडीयू के साथ लालू यादव की पार्टी आरजेडी व कांग्रेस ने मिल कर चुनाव लड़ा व जीता भी मगर नीतीश कुमार ने पलटी मारते हुए भाजपा संग सरकार बना लिया। 2015 से पहले भी नीतीश कुमार भाजपा के साथ रह चुके हैं। महाराष्ट्र में कांग्रेस ने शिवसेना के खिलाफ चुनाव लड़कर उसी के साथ सरकार में है! ऐसे में वो महागठबंधन में आये तो दाग धूल जाते हैं और असदुद्दीन ओवैसी एजेंट हो जाते हैं! असदुद्दीन ओवैसी ने एक इंटरव्यू में कहा कि उनकी पार्टी ने इस बार महागठबंधन में शामिल होने की कोशिश किया मगर उसे नजर अंदाज कर दिया गया। तो एक राजनैतिक दल होने के नाते उन्होंने चुनाव लड़ा और 5 सीटों पर कामयाब रहे। जीतन राम मांझी और मुकेश साहनी की पार्टीयों ने भी 4-4 सीटें जीती तो ओवैसी कैसे वोट कटवा हुए, वोट लुटवा क्यों नहीं?
क्या लोकतांत्रिक देश में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी को चुनाव लड़ने का अधिकार नहीं है? अगर इस मुल्क में नरेन्द्र मोदी, योगी आदित्यनाथ, गिरिराज सिंह, साक्षी महाराज, कपिल मिश्रा, अनुराग ठाकुर को चुनाव लड़ने और लड़ाने का अधिकार है तो फिर असदुद्दीन ओवैसी को क्यों नहीं? तेजस्वी यादव, अखिलेश यादव, मायावती, चिराग पासवान, जीतनराम मांझी, मुकेश साहनी सरीखों को चुनाव लड़ने-लड़ाने का अधिकार है तो फिर असदुद्दीन ओवैसी क्यों नहीं चुनाव लड़-लड़ा सकते हैं? आप असदुद्दीन ओवैसी के सियासी नजरिए से भले इत्तेफाक न रखते हों मगर एक दल के नाते उन्हें चुनाव में शामिल होने और गठबंधन करने से सिर्फ इसलिए कि सेकुलर वोट के बिखराव के नाम पर नहीं रोक सकते!
असदुद्दीन ओवैसी सीमांचल के मुस्लिम वोटरों को समझाने में शायद कामयाब रहे कि धार्मिक व जातीय गोलबंदी के जरिये सियासत करने वाले दलों ने सेकुलरिज्म के नाम पर मुस्लिम वोटों की फसल बहुत काटी है मगर मुस्लिमों को सियासी भागीदारी उतनी नहीं मिली जितनी मिलनी चाहिए! मुस्लिम कयादत भी उन्हें मंजूर नहीं! बिहार में अगर देखा जाए तो AIMIM ने 20 सीटों पर प्रत्याशी उतारे जिसमें 5 जीते, 9 जगहों पर महागठबंधन और 6 पर एनडीए की जीत हुई जबकि 70 सीट पर कांग्रेस चुनाव लड़ी 19 प्रत्याशी जीते बाकी एनडीए गठबंधन! कांग्रेस नेता ऋषि मिश्रा ने खुद आरोप लगाया कि ‘अध्यक्ष मदन मोहन झा के वजह से आज हमारी सरकार नहीं बनी। 40 वर्षों से आप मिथिलांचल में राजनीति कर रहें। आरजेडी ने आपको 70 सीट दी और आप 19 सीट ही जीतें, आप से अच्छा प्रदर्शन लेफ्ट पार्टी करती है। मेरा सोनिया जी से निवेदन है कि आप हम कांग्रेसियों को बचा लीजिए।’
ऐसे में यह कहना कि असदुद्दीन ओवैसी वोट कटवा हैं मेरे हिसाब से ठीक नहीं बल्कि बिहार में ओवैसी वोट लुटवा साबित हुए हैं! यही सवाल कांग्रेस से भी होनी चाहिए कि मध्य प्रदेश और गुजरात के उपचुनाव के परिणाम क्या हैं जबकि ओवैसी की पार्टी ने वहां चुनाव भी नहीं लड़े? राष्ट्रीय स्तर पर सियासत में मुस्लिम कयादत के खाली जगह को भरने की कोशिश असदुद्दीन ओवैसी पूरे दमखम के साथ करने में जुटे हैं। जिससे मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण से विपक्षी दलों को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है। ऐसे में यह देखना है कि एआईएमआईएम बंगाल और उत्तर प्रदेश के आम चुनाव में क्या गुल खिलाती है?