यानी आगे चलेंगे दम लेकर।
आज सुबह के वक्त हमारा पूरा परिवार जब सेहरी की तैयारी में था कि अचानक सालों से बीमार हमारी नानी जाहिरून निशा इस फानी दुनियां से भोर के तीन बजकर पांच मिनट पर कभी ना खत्म होने वाली दुनियां में चली गयीं। मौत जोकि शश्वत सत्य है। इस पर किसी का जोर नहींए क्या राजा क्या रंक सब एक समान। नानी कैंसर से पिछले दस सालों से बीमार थी मगर उसने कभी तकलीफ को जाहिर नहीं किया।
मैं अक्सर उसे कोटला साहब कहके पुकारता था वो खुश हो जाती। पूछने पर की ऐनी प्राब्लम तो कहती नो प्राब्लम। जिंदगी की तमाम तल्खियें से गुजरने के बाद भी नानी ने कभी दुख का इजहार तक नहीं किया। आज हम उन्हे सुपुर्दे खाक कर आयें। सुपुर्दे खाक किया अपने अरमानों को, अपनी खुशियों को। मैं अभी सोच रहा हूं अब कहां मिलेंगी कोटला साहब। किससे कहूंगा कि आज मुझे कुत्ते ने सींग मार दिया। किससे पूछूंगा कि खजूरिया साहब कहां है। आज दिल रो दिया कोटला साहब को याद कर के। आखिर मौत ही सच है बाकी सब झूठ। अब तो यादें ही बाकी हैं कोटला साहब की। कोटला सहब माफ करीयेगा अगर मुझे कुछ खता हुई होगी।
अल्लाह हाफिज कोटला साहब।
शायद अब कभी ना मिल सकुं की पूछुं जर्मन साहब कैसे हैं?
खुदा आपको जन्नत में जगह दे।
मुठठीयों में खाक लेकर दोस्त आए वक्त-ए-दफन
जिन्दगी भर की मुहब्बत का सिला देने लगे।
कोटला साहब को मेरी भावभीनी श्रद्धांजलि. ये बुजुर्ग होते हैं एक नियामत जो फिर कभी नहीं मिलते हैं. सब्र करें और उनके बताये रास्तों में दिशा खोजें यही आपका आदर देने का सबसे अच्छा तरीका होगा.
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