नई चेतना, नई आस है
नव बेला की सांझ नई
लोग खड़े हैं राष्ट्र सृजन को
कलुषित मानव हुए विकल
भांति-भांति के तर्क हैं गढ़ते
कहते इससे क्या हो सकता
मंजिल की है बातें करते
चलने पर बेचैनी
बेखौफ जवानी की अंगड़ाई
परिवर्तन का मार्ग प्रसस्त हुआ
प्रथम कदम है शुरूवात
नव उषा की मादकता है
इसकी सुगन्ध में नव जीवन की।
जागी है उम्मीद नई।।
safalta ke liye isi utsah ki jaroorat hoti hai -नव उषा की मादकता है
ReplyDeleteइसकी सुगन्ध में नव जीवन की।
जागी है उम्मीद नई।-
bahut sarthak panktiyan .aabhar
Nice post.
ReplyDeletehttp://blogkikhabren.blogspot.com/2011/04/blog-fixing_28.html