Sunday, March 18, 2018

आज के दिन

स्वागत करिये भारतीय नव वर्ष का


इंसान की जिन्दगी में आने वाला हर नया साल उसके लिए बहुत ही कीमती होता है। बीतते वक्त के साथ बदलता कैलेण्डर हमारे लिए महज तारीख का बदलन नहीं है बल्कि हमारे भूत और भविष्य की दिशा निर्धारण का पैमाना होता है। साल की शुरूवात इंसान की जिन्दगी में उमंग और उल्लास के साथ खुशी लेकर आनी चाहिए न कि हाडकपाती ठण्ड! हम भारतवासी ईसवी सन् के प्रथम दिन यानि एक जनवरी को नये वर्ष के रूप में बड़े धूम-धाम से मनाते हैं। जिसका न तो कोई खगोलीय प्रतिष्ठा है, न प्राकृतिक अवस्था और न ही ऐतिहासिक पृष्ठभूमी। जनवरी के सर्द मौसम में हाड कपाती ठंड व रक्त संचार जमा कर मनुष्य की गतिशीलता को रोक देता है। पेड़ पौधों का विकास रूक जाता है तथा उनके पत्ते पीले पड़ जाते हैं। इस मौसम में सूरज का प्रकाश भी मध्म पड़ने लगता है। कोहरे के धुंध में सब कुछ धुंधला सा दिखता है। जल के श्रोत बर्फ का चादर ओढ़ लेते हैं। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं0 जवाहर लाल नेहरू ने इसी सब को देखकर नवम्बर 1952 में परमाणु वैज्ञानिक मेघनाथ साहा की अध्यक्षता में पंचांग सुधार समिति का गठन किया था। इस समिति में एस. सी. बनर्जी, गोरख प्रसाद, वकील के एल दफतरी, पत्रकार जे. एस. करंडिकर व गणितज्ञय आर. वी. वैद्य थें। समिति ने सन् 1955 में सर्व सम्मती से विक्रमी संवत पंचांग को स्वीकार करने की सिफारिश की। मगर पंडित नेहरू ने ग्रेगेरियन कैलेंडर को ही सरकारी कामकाज के लिए उयुक्त मानकर 22 मार्च 1957 को ग्रेगेरियन कैलेंडर को राष्ट्रीय कैलेंडर के रूप में स्वीकार किया। 
भारतीय नव वर्ष मनाने के लिए सबसे उपयुक्त विक्रम संवती का प्रथम दिन है क्योंकि प्रकृति इस समय शीतलता एवं ग्रीष्म की आतपता का मध्य बिन्दु होता है। जलवायु समशीतोष्ण रहती है। बसंत के आगमन के साथ ही पतझड़ की कटु स्मृति को भुलाकर नूतन किसलय एवं पुष्पों के युक्त पादप वृन्द इस समय प्रकृति का अद्भुत श्रृंगार करते दिखते हैं। पशु-पक्षि, कीट-पतंग, स्थावर-जंगम सभी प्राणी नई आशा के साथ उत्साहपूर्वक अपने-अपने कार्यों में प्रवृत्त दिखाई पड़ते हैं। चारों तरफ सब कुछ नया-नया दिखयी पड़ता है। मनुष्य की प्रवृत्ती उस आनन्द के साथ जुड़ी हुई है जो बारिश की प्रथम फुहार के स्पर्श पर, प्रथम पल्लव के जन्म पर, नव प्रभात के स्वागत में पक्षी के प्रथम गान या फिर नवजात शिशु का संसार में प्रथम आगमन के किलकारी से होता है। 
ऐसा माना जाता है कि सम्राट विक्रमादित्य ने शकों को पराजित करने की याद में इसी दिन राज्य स्थापित कर विक्रमी संवत की शुरूवात की। मर्यादा पुरूषोततम राम के जन्मदिन रामनवमी से नौ दिन पहले मनने वाले उत्सव भक्ति व शक्ति के नौ दिन अर्थात नवरात्र का प्रथम दिन तथा लंका विजयोपरान्त आयोध्या लौटे राम का राज्याभिषेक इसी दिन किया गया। यही नहीं शालिवाहन संवत्सर का प्रारम्भ दिवस विक्रमादित्य की भांति शालिवाहन ने हुणों को परास्त कर दक्षिण भारत में राज्य स्थापित करने हेतु इसी दिन का चुनाव किया। उत्तर भारत में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, आन्ध्र प्रदेश में उगादी, महाराष्ट में गुड़ी पड़वा, सिंधु प्रांत में चेती चांद के रूप में नव वर्ष बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है। इसी दिन को दयानंद सरस्वती जी ने आर्य समाज की स्थापना दिवस के रूप में चुना। भारतीय परम्परा व शास्त्र के अनुसार विक्रम संवत का पहला दिन ही भारतीय नव वर्ष के रूप में मनाया जाना उचित व प्रसंगिक है। आइये दिल खोलकर विजय मिश्र बुद्धिहीन की काव्य रचना के साथ भारतीय नव वर्ष का स्वागत करें...
  
  स्वागत तेरा नव विहान
  खेले होठों पर हंसी कली 
  है विहंस रहा सारा वितान
  स्वागत तेरा नव विहान।

 पत्ते पत्ते खुशी मनाए    
 मंद पवन है अंग लगाए
 पलक पाँवड़े बिछा सभी
 हैं विहंग कर रहे मधुर गान
 स्वागत तेरा है नव विहान।

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