Friday, March 4, 2011

ये शाम मस्तानी...




कुछ ज्यादा नहीं कहना हैबस यूँ ही सोच रहा था कि ....

सुबह
होती है शाम होती है,
ज़िन्दगी यूँ ही तमाम होती है
दुआओं का तलबगार...
एम अफसर खान सागर

2 comments:

  1. अच्छा चिन्तन....
    कुछ भारतीय इतिहास पर भी लिखें, पढ़ कर प्रसन्नता होगी.

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  2. उम्दा,बेहतरीन
    शाम पुरकशिस हो गई आपके ख्याल से...

    कमाल का लिखते और दिखाते हो मियाँ

    डा.अजीत

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