पर्यटन के नक़्शे से गुम कार्नवालिस
- एम अफसर खान सागर
ब्रिटिश हुकूमत के दौरान लार्ड कार्नवालिस ने जो भूमी बन्दोबस्त, राजस्व व न्याय सुधार किए थे उसी तय लीक पर आज भी अमल बदस्तूर जारी है। ब्रितानीहुकूमत के बेताज बादशाह रहे लार्ड कार्नवालिस जमीन की पैमाइष कराते हुए कनकत्ता, पटना व बबक्सर होते हुए गंगा नदी पार कर उत्तर प्रदेश के गाजीपुर की तहसील मोहम्दाबाद पहुंचे। मोहम्दाबाद के गौसपुर में मलेरीया बुखार के चलते गंगा के तट पर 05 अक्टूबर 1805 को 67 साल की उम्र में इस जांबाज गर्वनर जनरल की मैत हो गयी। जिसके याद में तत्कालीन कलकत्ता ब्रिटिश नागरिकों ने गाजीपुर के गोराबाजार स्थित पी. जी. कालेज के सामने 06 एकड भूमी पर एक भव्य मकबरे का निर्माण कराया।
ब्रिटिश स्थापत्य कला का उत्कृष्ट नमूना लार्ड कार्नवालिस का मकबरा तकरीबन 19 साल के तवील मुद्दत के बाद बनकर तैयार हुआ। मुख्य मकबरे की बात करें तो भूतल से 3.66 मीटर वृत्ताकार चबूतरे पर विशाल गुम्बदनुम संरचना 12 विशाल पत्थर से बने खंभों पर टिकी ह्रै। धूसर रंग के संगमरमर से बने इस मकबरे के केन्द्र में स्वेत संगमरमर की लार्ड कार्नवालिस की अवाक्ष मुर्ति एक वर्गाकार चौकी पर स्थापित है। इसके चारों तरफ एक ब्राहम्ण, एक मुसलमान, एक यूरोपियन व एक स्थानीय सैनिक मर्माहत मुद्रा में दर्शाया गया है। साथ ही उसपर कमल के फूल, कलियां, पत्तियानें की उत्कृष्ट नक्काशी उकेरी गयी है। चौकी के उत्तरी व दक्षिणी फलक पर क्रमशः उर्दू तथा अंग्रेजी में लार्ड कार्नवालिस की यशगाथा अंकित है। अधोमुखी तोपों से युक्त तथा भाला, तलवार आदि के अंकन से युक्त घेराबन्दी मनमोहक लगती है। कार्नवालिस के मकबरे की देख-भाल की जिम्मेदारी भारती पुरातत्व विभाग पर है। मकबरे की दीदार की खतिर भारतीय पुरातत्व विभाग भारतीय नागरिकों से पांच रूपया व विदेशी सैलानियों से दो यू.एस. डालर वसूल करता है। भारत आजाद हुआ। अंग्रेज वापस आपे मुल्क चले गये। निजाम बदलने के साथ इन्तजाम भी बदला। उचित संरक्षण के आभाव में कार्नवालिस के मकबरे में बदहाली ने अपना साम्राज्य कायम करना शुरू किया। सैलानियों से पियाउ जल छिना, शौचालय, स्नानागार खण्डहर में तब्दील हुए, फिर बैठने के लिए लगाये गये 16 बेंच धराशायी हुए। टिकट बुकिंग काउंटर ढहा उसके बाद कुआं के जगत ने दमतोड़ा। हां, मरणसन्न कुएं का जगत प्रेमियों के लिए आाशियाना जरूर बना। चार माली व तीन परिचर के सहारे चल रहा मकबरे की देख-भाल लावारिश व यतीम बच्चे से कम तो बिल्कुल नहीं है।
अब अगर मकबरे की गुम्बद पर गौर फरमायें तो इसमें बरसात का पानी बहुत ही सलीके से रिसता है। गुम्बद की छत पर विलाप करते हुए कबूतर आदि पंछियों ने बीट कर रखा है। मकबरे के अन्दर मधुमक्खीयों का साम्राज्य स्थापित है। मकबरे के भीतरी दीवारों पर प्रमियों ने अपने चाहने वालों के नाम कार्नवालिस के यशगाथा के साथ स्कैच, पेन्ट आदि से अंकित कर रखा है। मकबरे को अपनी निगहबानी में रखे चहारदीवारी भी अब निगहबानी करते-करते थकते नजर आते हैं, सो प्लास्टर के साथ अब ईंट उखड़ने लगे हैं। वो तो गनीमत है कि ब्रितानी हुकूमत के लगाये गये लोहे की छड़ों पर जंग नही लगा है। इस बदहाली की सूरत में लार्ड कार्नवालिस की रूह येह शेर जरूर याद कर रही होगी-
आये थे वो मेरी कब्र पे फातिहा पढ़नें
ले गये उखाड़ के ईंटे वो मेरी कब्र के।
ले गये उखाड़ के ईंटे वो मेरी कब्र के।
पुरातत्व विभाग के संरक्षण सहायक प्रदीप कुमार त्रिपठी से मकबरे की बदहाली पर एक बार बात हुई थी तो उन्होने बताया कि ‘‘मकबरे की सुन्दरीकरण में अभी बहुत कुछ करना है। बजट के हिसाब से कामों को पूरा किया जाता है। जल्द ही मकबरे को बेहतर रूप दिया जाएगा।’’ लार्ड कार्नवालिस अपने सुधारों के लिए इतिहास में भले ही अमर हो गये हों लेकिन पर्यटन विभाग के भारत गाइड बुक में उनके मकबरे के लिए शायद जगह नहीं है। इससे बड़ी उपेक्षा की बात क्या हो सकती है? जाहिर है ऐसे में ब्रितानी व अन्य मुल्कों के सैलानी अपने इस जांबाज गर्वनर जनरल के मकबरे की जियारत से महरूम रह जाते हैं। जबकि बौद्ध दर्शन की खातिर पर्यटक कूशीनगर, वाराणसी-गाजीपुर मार्ग से ही जाते हैं। मकबरे में कार्यरत एक कर्मचारी ने बताया कि तकरीबन दस साल पहले कार्नवालिस के वंशज मकबरा देखने आये थे। दो घंटा बिताने के बाद हर कर्मचारी को सौ रूपये बतौर बख्शिश दिया और चले गये।
भारतीय पर्यटन के नक्शे से गुम लार्ड कार्नवालिस का मकबरा खुद की बेनूरी मायूस जरूर है मगर इससे होने वाली विदेशी मुद्रा की आमदनी से सरकार भी महरूम है। अगर सरकार व भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग कार्नवालिस के मकबरे का सुन्दरीकरण करा कर पर्यटकों कर खातिर उचित सुविधा मुहैया कराकर इसे भारत गाइड बुक व पर्यटन के नक्शे पर अंकित करा देती है तो इससे विदेशी मुद्रा तो अर्जित होगा ही बल्कि इस जांबाज गर्वनर जनरल के रूह को सुकून मिलेगा। वर्ना कार्नवालिस की रूह हमेशा अल्लमा इकबाल साहब के इस शेर से मुत्मयिन हो जाएगी-
आयी बहार कलियां फूलों की हंस रही हैं
मैं इस अंधेरे घर में किस्मत को रो रहा हूं।
मैं इस अंधेरे घर में किस्मत को रो रहा हूं।
ये सब प्रशासन की लापरवाही है पता नही ऐसे कितने स्थान अभी नक्शे पर नही हैं। धन्यवाद इस जानकारी के लिये।
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