Thursday, February 17, 2011

ग़ज़ल

प्यार





आओ अब नफरत को मिटाएं,
दिल में प्रेम का दीप जलाएं।

किसने लूटा, किसने छीना,
इन बेकार की बातों से अब पीछा तो छुड़ाएं।

कत्ल, जना और मक्कारी से,
खुद भी बचें औरों को बचाएं।

गुरबत, नफरत और अदावत की बातों को,
अपने मुल्क की सरहद से अब तो दूर भगाएं।

आतंक की काली घटनाओं ने छीन ली खुशीयों को,
आओ, अब तो हिन्दू और मुस्लिम का फर्क मिटाएं।

नोटों की गठ्ठर से दबकर चीख़ रही है खुद्दारी भी,
फित्ने के इस दौर में यारों अब तो अपना ईमान बचाएं।

खून की लाल छीटों से सूर्ख पड़ी है मानवता,
प्यार के कोमल एहसासों से जख्मों का दाग़ मिटाएं।।

2 comments:

  1. आतंक की काली घटनाओं ने छीन ली खुशीयों को,
    आओ, अब तो हिन्दू और मुस्लिम का फर्क मिटाएं।

    बहुत सुंदर विचार...प्रभावी प्रस्तुति

    ReplyDelete
  2. खून की लाल छीटों से सूर्ख पड़ी है मानवता,
    प्यार के कोमल एहसासों से जख्मों का दाग़ मिटाएं। बहुत सुंदर विचार.sanjay mishra

    ReplyDelete