Tuesday, February 8, 2011

गजल

जिंदगी

अब तुझे क्या कहूँ मैं तू ही बता ए जिंदगी
है जो तू बेवफा तो फिर बता क्यूँ करूँ तुझसे दिल्लगी

ग़म के लम्हों में क्यूँ डगमगाती है जिंदगी
ख़ुशी के लम्हों में क्यूँ कहकहे लगाती है जिंदगी

ग़म हो के ख़ुशी क्यूँ आंसू बहती है जिंदगी
रात की स्याह से क्यूँ आँख चुराती है जिंदगी

गुल में क्यूँ खार उगती है जिंदगी
ग़म के आग में क्यूँ जलती है जिंदगी

गर दिल में इश्क जगती है जिंदगी
तो फिर क्यूँ अश्क बहती है जिंदगी

अर्थ के बिन क्यूँ अर्थहीन है जिंदगी
क्यूँ उदास और ग़मगीन है जिंदगी

ज़माना पूछता है क्यूँ इतना खामोश है सागर
क्या तेरे तनहाइयों को छु गई है ज़िन्दगी।

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