Wednesday, February 23, 2011

शहरनामा

मुगलसराय: रेल से धड़कता शहर

  • एम अफसर खान सागर


मुगालासरा रेलवे स्टेशन

मुगलासराय रेलवे स्टेशन पर बिछा रेलवे लाइन का संजाल

डी आर एम कार्यालय मुगलसराय

आप अगर भारत के महत्वपूर्ण स्थलों के भ्रमण की इच्छा रखते हैं तो आपका सामना मुगलसराय से न हो ये कैसे हो सकता है। विष्व की प्राचीन नगरी काशी (वाराणसी) देश की सांस्कृतिक व धार्मिक राजधानी है और मुगलसराय पूर्व और उत्तर भारत के लिए उसका प्रवेश द्वार है। कहीं आप गया या फिर बोध गया जाना चाहते हैं या फिर आपकी इच्छा जॉब चनिक द्वारा बसाये शहर कोलकाता जाना हो तो आप बस या रेल मार्ग से जायें, मुगलसराय से बच पाना नामुमकिन है। मुगलसराय रेलवे का ऐसा चेजिंग प्वाइंट है कि आपके यात्रा संस्मरणों में न चाहते हुए भी चुपके से घुस जाता है।
वाराणसी जो कि मन्दिरों और घाटों का नगर है उससे 10 किमी0 पूर्व में उत्तर प्रदेश के चन्दौली जनपद का मिनी महानगर माना जाता है। विश्व में अपनी अलग पहचान रखने वाला मुगलसराय एशिया का सबसे बड़ा रेलवे यार्ड व एशिया की विशालतम कोयला मण्डी यहीं चंधासी में स्थित है। अपने अतीत में अनेकों रहस्य समेटे यह नगर बहुसांस्कृतिक, बहुवर्गीय व बहुधार्मिक पहचान रखता है। इसके नामकरण के बारे मान्यता है कि मुगलकालीन सम्बन्धों की वजह से इसका नाम मुगलसराय पड़ा। मुगलकालीन समय में यहां मुगलों की दो सरायें हुआ करती थीं जिसमें मुगलों की सेना व व्यापारी ठहरा करते थें बाकी इन सरायों के पास इनके मनोरंजन के वास्ते वेश्याओं व हिजड़ों का जमावड़ा हुआ करता था। इस शहर को बसाने में शेरशाह सूरी बड़ा योगदान है क्योंकि पहले ग्रान्ट ट्रंक ने ही इसकी भाग्य लकीर खींची थी। मुगलसराय राष्ट्रीय राज मार्ग नम्बर दो पर बसा है। मुगलसराय दिल्ली व हावड़ा रेल लाइन के बीच स्थित है। मुगलसराय की पहचान सादगी व सरलता के प्रतिमूर्ति व राष्ट्र के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी के जन्म स्थान के रूप में है तथा एकात्म मानववाद के प्रणेता व महापुरूष पण्डित दीनदयाल उपाध्याय जी का पार्थिव शरीर सफेद कपड़े में लिपटा इसी मुगलसराय रेलवे स्टेशन पर मिला जिससे कि इसका दूसरा नाम दीनदयाल नगर भी है।


एशिया की विशालतम कोयला मण्डी में ट्रकों का जमावड़ा

मुगलसराय का जीवन पूरी तरह रेल पर आधारित है। इस शहर को रेल ने बसाया है। रेल इसकी सांसों में, धड़कनों में है। रेल की प्रतीक ध्वनि छुक-छुक यहां के लोगों के नसों में सुनायी देती है। इस शहर को रेल ने जीवन व संस्कार दिया है। मुगलसराय में आबादी का बसना रेलवे लाइनों के बिछने के बाद ही शुरू हुआ था। सन् 1862 ई. में हावड़ा से दिल्ली जाने के लिए रेलवे लाइन का विस्तार किया गया इसके बाद सन् 1880 ई. में मुगलसराय रेलवे स्टेशन की इमारत का निर्माण किया गया। तत्पश्चात सन् 1905 ई. में इस भवन का सुधार किया गया तथा सन् 1976 ई. में पण्डित कमलापति त्रिपाठी द्वारा रेल भवन के नवीनीकरण के लिए स्मारक पत्थर रखा गया जो कि सन् 1982 ई. में इसका निर्माण कार्य पूर्ण कर आमजन के लिए खोल दिया गया। मुगलसराय अप्रैल सन् 1978 ई. में पूर्व-मध्य रेलवे का मण्डलीय मुख्यालय बना। मुगलसराय एशिया का सबसे बड़ा रेलवे यार्ड है जिसकी लम्बाई १२.6 किमी0 है तथा इसमें तकरीबन 250 किमी0 लम्बी लाइन बिछी है। इस यार्ड को नियंत्रित करने के लिए 10 ब्लाक केबिन व 11 यार्ड केबिन है।




एल. बी. एस. पी. जी. कोलाज , मुगलसराय उपर और शास्त्री जी की जन्म स्थली नीचे

मुगलसराय में 19 वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में विद्युत लोको शेड की स्थापना की गयी इसमें हावड़ा से दिल्ली तक गया होते हुए ट्रेनों का संचालन होता है। इस विद्युत लोको शेड में करीब 137 रेल इंजन रखने की व्यवस्था है। डीजल लोको शेड की स्थापना सन् 1962 ई. में उत्तर रेलवे के सौजन्य से कराया गया जिसमें मुगलसराय से इलाहाबाद व मुगलसराय से लखनऊ तक डीजललीकरण के लिए अमेरीका की जनरल मोटर ऑफ अमेरीका से 16 ॅक्ड डीजल इन्जन भी उपलब्ध कराया गया। इमसें 72 रेल इन्जनों की रख -रखाव की व्यवस्था है। मुगलसराय स्थित प्लान्ट डीपो का इतिहास काफी पुराना है। इसकी स्थापना मालवीय पुल (इफरीन ब्रीज) के निर्माण के समय स्टोर के रूप में की गयी थी। सन् 1929 ई. में प्लान्ट डिपों इंजीनीयरिंग और मैकेनिकल प्लान्ट को स्टोर के लिए पूर्व रेलवे द्वारा किया गया था जिसमें औजारों के रख - रखाव का काम किया जाता था। प्लान्ट डिपो द्वारा कई पुलों का निर्माण किया गया जिसमें बेली पुल (विवेकानन्द पुल), बराकर पुल, जमुना पुल, सोन पुल तथा डेहरी आसनसोल पुल शामिल है। मुगलसराय आज भारतीय रेल के विशाल संजाल का सबसे प्रमुख केन्द्र है, जिसकी धड़कन रूकी तो समझिए कि भारतीय रेल का नवर्स ब्रेकडाउन होने लगता है। भारतीय रेल के दिल्ली मुख्यालय में मुगलसराय का ओके होना अति आवश्यक है। यही करण है कि अनयास ही रेल मंत्री जी का रूख मुगलसराय की तरफ हो जाता हैं। मुगलसराय से प्रतिदिन 125 ट्रेनों का गुजर होता है जो कि भारत के विभिन्न राज्यों तथा नगरों को जाती हैं। एशिया का सबसे बड़ा यार्ड होने की वजह से यहाँ ट्रेनों का पड़ाव रहता है। मुगलसराय के सामुदायिक जीवन पर निगाह डालने पर पता चलेगा कि यह बहुवर्गीय व बहुधार्मिक शहर है जहां सामाजिक समरस्ता चहुंओर देखने को मिलेगा। मुख्यतः नगर दो भागों में बंटा है पहला नगरपलिका के 25 वार्ड तथा दूसरा रेलवे नगर पंचायत में भी इतने ही वार्ड हैं। आबादी के दृष्टिकोण से 80 प्रतिशत हिन्दु, 13 प्रतिशत मुसलमान, 02 प्रतिशत ईसाई बाकी 05 आबादी में सिख, बौद्ध, बंगाली समेत अन्य जाति के लोग हैं। अमुमन उपभोक्ता प्रधान समाज है फिर भी सामाजिक समरस्ता का आभाव तनिक भी नही देखने को मिलेगा। नगरपालिका अध्यक्ष राजकुमार जायसवाल का मानना है कि ‘‘मुगलसराय के लोगों में उपभोक्तावादी संस्कृति के बावजूद सामाजिक समरस्ता में कोई कमी नहीं है, मुगलसराय के विकास में यहाँ के आम नागरिकों का बहुत बड़ा योगदान है।’’ स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद सन् 1947 ई. में भारत-पाक विभाजन के दौरान यहाँ शरणार्थी सिखों का एक जत्था आकर बस गया जो कि अब मुगलसराय में अपनी व्यावसायिक पकड़ बना चुके हैं।


गुरु द्वारा, मुगलसराय

का मुगलसराय में दो गुरूद्वारा है जिसमें जी0 टी0 रोड स्थित गुरूद्वारा दर्शनीय है जिसमें प्रत्येक दिन इस समुदाय के लोग पूजा -अर्चना करते हैं। इस समुदाय के लोग गुरूनानक जयन्ती व लोहडी का पर्व बड़े हर्ष के साथ मनाते हैं। गुरूद्वारा कमेटी के अध्यक्ष सरदार मोहन सिंह कहते हैं कि ‘‘ भारत-पाक विभाजन के बाद हमारा जीना दोभर हो गया था मगर मुगलसराय की जिन्दादिली की वजह से हम लोग इस शहर में अपना आशियाना बनाकर आराम से जी रहे हैं। इस शहर के लोग काफी जिन्दादिल व सामाजिक समरस्ता के प्रतीक हैं। मुगलसराय विश्व की अनूठी सामुदायिक जीवन की मिशाल है।’’

भारतीय राजनीती के आदर्श पुरुष लाल बहादुर शास्त्री जी

मुगलसराय में ज्यादातर लोग रेल की वजह से आ बसे हैं तथा व्यावसायिक लोगों की तायदाद भी कम नहीं है। यहां भिन्न-भिन्न प्रदेशों के अलग-अलग समुदाय के लोग रहते हैं। जिनकी अपनी अलग संस्कृति हैं। यहां पर मुस्लिम आबादी के धार्मिक क्रिया कलापों के लिए सात मस्जिदें हैं जिसमें जी0 टी0 रोड स्थित जामा मस्जिद प्रमुख है। जहां दूर-दराज से आने वाले मुसाफिर तथा बाजार के लोग नमाज अदा करते हैं। वहीं ईसाई समुदाय के वास्ते चार गिरजाघर हैं जिसमें एक कैथोलिक व तीन प्रोस्टिट चर्च है। रेलवे परिक्षेत्र में स्थापित दो चर्च अंग्रेजों के समय उनकी धार्मिक आवश्यकताओं के लिए बनाया गया था। प्रत्येक वर्ष नवम्बर माह में देश- विदेश से इस समुदाय के लोग यहां इकठ्ठा होते हैं तथा प्रार्थनाएं करते हैं। सन् 1907 ई. में ग्राण्ट ट्रंक रोड के किनारे आर्य समाज के लोगों द्वारा विशाल आर्य समाज मन्दिर की स्थापना की गयी। आर्य समाज के लोगों की हर प्रकार की सामाजिक गतिविधियों का संचालन यहीं से होता है। मन्दिर में प्रत्येक दिन पूजा-पाठ होता है। हिन्दू समाज के लिए मुगलसराय में अनेकों मन्दिर व मठ हैं जिसमें प्रमुख रूप से अलीनगर स्थित प्राचीन रामजानकी मन्दिर, स्टेशन परिसर में हनुमान मन्दिर, काली मन्दिर, बिछुआ मन्दिर, सेन्ट्रल कालोनी स्थित प्राचीन घोंघारी मन्दिर, राम मन्दिर, गौड़ीय मठ प्रमुख हैं। यहां वर्ष भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।


आर्य समाज मंदिर, मुगलसराय

मुगलसराय की धरती ने ही लाल बहादुर शास्त्री जी जैसे महान व्यक्तित्व को जन्म दिया। सरलता व सुचिता के प्रतिमूर्ति व भारत के द्वितीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी का जन्म सन् 02 अक्टूबर 1904 को रेलवे सेन्ट्रल कलोनी में हुआ था। स्वतंत्रता संग्राम सेेनानी डॉ0 रामप्रकाश शाह (85) बताते हैं कि ‘‘सेन्ट्रल कालोनी स्थित हनुमान मन्दिर परिसर के पास ही लाल बहादुर शास्त्री जी के नाना मुंशी हजारी लाल का मकान था जहां आपका जन्म हुआ था। आपके नाना रेलवे के बेसिक स्कूल में हेडमास्टर थें तथा पिता का साया बचपन में ही उठ जाने से आपका पालन-पोषण उन्ही ने किया। अब उस स्थान पर शास्त्री पार्क का निर्माण हो गया है।’’ लाल बहादुर शास्त्री जी हमेशा मूल्यों की राजनीति करते थें और पैबंद लगे कपड़े पहनते मगर अपने उसूलों से कभी समझौता नहीं करते थें। आपने ही जय जवान, जय किसान का अमर नारा दिया था।


जामुन का मज़ा ही कुछ और है

मुगलसराय में औद्योगिक क्रान्ति का आरम्भ सन् 1958.60 के दौरान रिहन्द बाँध से विद्युत उत्पादन के प्रारम्भ होने के साथ हुआ। इसके फलस्वरूप मुगलसराय व पड़ाव के बीच कल-कारखानों की स्थापना हुयी। द्वितीय पंचवर्षीय योजना में कार्वे समिति के स्थापना के बाद यहाँ कारखानों का विकास प्रारम्भ हुआ। जिनमें ग्रान्ट ट्रंक रोड के किनारे तथा रामनगर वाराणसी में विभिन्न कारखानों की स्थापना हुयी। इसके तहत सन् 1966 ई में इंडियन एयर गैस दुल्हीपुर, मुगलसराय में स्थापित हुयी। इसका प्रमुख उत्पादन एसीटीलीन, नाइट्रोजन व ऑक्सीजन गैस हैं जिनका इस्तमाल मुख्य रूप से अस्पतालों, रेलवे व उद्योगें अदि में किया जाता है। यहीं पर वायर एण्ड नेट इण्डस्ट्रीज भी कोलकाता मुख्यालय के सहयोग से स्थापित हुयी जिसमें तारें व जालों का निर्माण किया जाता है। इसमें उत्पादित तार व जाल टाटा, रेलवे समेत भारत के कई कम्पनियों को जाती हैं। सन् 1980 में जे0 जे0 आर0 इण्डस्ट्रीज की स्थापना हुयी जिसमें कच्चे माल को अच्छी तरह तैयार कर ऊनी कपड़ों का निर्माण किया जाता है। मुगलसराय के विकास में मील का पत्थर सन् 1960 ई. स्थापित हुआ जब इंडियल ऑयल कार्पोरेशन का मुख्यालय अलीनगर मुगलसराय में उद्घाटित हुयी। नगरपालिका परिषद का अलीनगर वार्ड जहाँ रोज सैकड़ों टैंकरों की लम्बी कतार लगती है इससे पहले विरान था। इंडियन ऑयल कारर्पोरेशन को बरौनी तेल शोधक कारखाने से बरौनी-कानपुर पाइप लाइन से तेल प्राप्त होता है जिसका वितरण पूर्वी उत्तर प्रदेश समेत नेपाल को भी होता है। इंडियन ऑयल कारर्पोरेशन का मुख्य रूप से दो कार्य है पहला पाइप लाइन का जिससे तेल प्राप्त होता है दूसरा मार्केटिंग डिविजन द्वारा इसका वितरण किया जाता है। मुगलसराय में नव धनाढ़यों की एक नयी प्रजाती को इस तेल के रंगीन खेल ने जन्म दिया है। इसकी सहायता से हजारों लोगों को रोजगार मिली है जिसमें कुछ लोग तेल का काला खेल खेलते हैं तथा कुछ मेहनतकश वर्ग है व कुछ ठीकेदार हैं। इस प्रकार इससे मुगलसराय के आस-पास के लोगों समेंत अन्य जगहों के लोगों के दो जून की रोटी मयस्सर हो जाती है।


मुगलसराय के दो किलोमीटर पश्चिम जाने पर एशिया की सबसे बड़ी चन्धासी कोयला मण्डी है जो कि काले हीरे का पड़ाव माना जाता है। मण्डी में प्रतिदिन ट्रकों का रेला लगा रहता है। सन् 1975 ई. में यहाँ स्थापित होने से पूर्व यह कोयला मण्डी मालवीय पुल के पास पड़ाव के पास स्थित था। सर्वेश्वरी कुष्ठ सेवा आश्रम के मरीजों के दिक्कत की वजह से इसे चन्धासी में स्थापित किया गया। एशिया के इस विशालतम कोयला मण्डी में प्रतिदिन बंगाल, झारखण्ड, बिहार, असोम व मध्य प्रदेश के कोयला खदानों से तकरीबन छः सौ ;600द्ध ट्रक कोयला आता है। सीजन के दौरान इसकी संख्या आठ सौ (800) ट्रक तक पहुँच जाता है। इस कोयला मण्डी ने आस-पास के गाँववासीयों समेत अन्य प्रदेश के हजारों लोगों को रोजगार प्रदान करती है। काले हीरे के कारोबार ने करोड़पतियों की एक लम्बी फेहरिशत तैयार की है। काले हीरे के इस कारोबार ने पूरे भारत के व्यापारियों की नजर अपनी तरफ खींचा है। मगर सन् 1980 .81 के बीच का समय चन्धासी कोयला मण्डी के लिए बेहद खराब गुजरा। माफियाओं की गिद्ध निगाह और प्रशासन की तिरछी नजर ने कारोबारीयों को हिला कर रख दिया। रंगदारी टैक्स की वजह से दूसरे प्रदेश के व्यापारियों ने अपने कारोबार को समेट दिया है। रंगदारी टैक्स की भेंट वाई0 के0 जैन, नन्द किशोर रूंगटा, आनन्द कुमार अग्रवाल समेत दर्जनों व्यापारी मौत की घाट चढ़ चुके हैं। विदित हो कि चार करोड़ रूपये वार्षिक राजस्व देने के बावजूद प्रशासन के छापों से यहाँ के व्यापारी तंग हो गयें जिससे कि एशिया की विशालतम कोयला मण्डी के कारोबार पर काफी विपरीत प्रभाव पड़ा है। इन सभी दिक्कतों के बाद भी एशिया की विशालतम चन्धासी कोयला मण्डी में काले हीरे की चमक बरकरार है।

प्राचीन रामजानकी मंदिर, अलीनगर-मुगलसराय

औद्योगिक विकास के लिए शिक्षा का होना अति आवश्यक है जिसके लिए मुगलसराय में सात इण्टर कालेज, एक केर्न्दीय विद्यालय, दो महाविद्यालय समेत दर्जनों कान्वेन्ट हैं। लाल बहादुर शास्त्रीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय मुगललसराय के उच्च श्क्षिा का रीढ़ है। चिकित्सा के लिए मुगलसराय में रेलवे के तीन हॉस्पीटल समेत अनेकों प्राइवेट चिकित्सालय है। व्यापारिक केन्द्र होने के नाते मुगलसराय में बैंको व ए0टी0एम0 का संजाल बिछा है। यहाँ पर सात विभिन्न राष्ट्रीकृत व उनके ए0टी0एम0 मौजूद हैं।
ग्रान्ट ट्रंक रोड के दोनों तरफ फैला मुगलसराय बाजार काफी विस्तृत है। प्रमुख रूप से सब्जी मण्डी, गल्ला मण्डी, मछली मण्डी व दूध मण्डी में खरीदारों व व्यापारियों की भीड़ देखी जा सकती है। आस-पास के गाँव के किसान समेत बिहार के कुछ व्यापारी मुगलसराय की मण्डी में अपने उत्पादों की खरीद व फरोखत के लिए प्रतिदिन आते हैं। शास्त्री कटरा व परमार कटरा स्थित शापिंग काम्पलेक्सों में खरीदारों की भीड़ देखी जा सकती है। मुगलसराय की जीवन शैली पूरी तरह से रेल पर आधारित है तथा यह शहर रेल के स्पंदन से धड़कता है।

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