Wednesday, February 9, 2011

संताप

संताप

भूख लिखूंगा, प्यास लिखूंगा
जीवन को संताप लिखूंगा !

प्यार के पागलपन में खाया था जो धोखा
उसको क्या विश्वास लिखूंगा ?

जीवन में आये रिश्तों के इस पतझड़ को
कैसे मैं बरसात लिखूंगा ?

महलों में जो रहने वाले, फूत्पथों के दर्द न जाने
हिचकोले खाते इस जीवन को कैसे मधुमास लिखूंगा ?

राम नाम की चादर ओढ़े, चौराहों पर दिखे लुटेरे
कैसे हुई विसंगति यारों, इसको क्या अभिशाप लिखूंगा ?

सड़कों पर है ठोकर खाती, बनी देश पर बोझ जवानी
बदहाली के इस सूरत को, कैसे भला विकास लिखूंगा ?

सम्प्रदाय और क्षेत्रवाद की फसल उगाकर चरने वाले
खून के छींटों, जख्म के चीत्कारों के बल पलने वाले
देश के ऐसे गद्दारों को, गाँधी और सुभाष लिखूंगा ?

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