Wednesday, February 9, 2011

आजकल

आजकल

पंछियों ने चहचहाना क्यूँ छोड़ दी है आजकल
शायद दरख्तों पर है धमाकों की गूँज आजकल

होली के दिनों में भी बंद हैं रंगों की फैक्ट्रियां
रंगों की जगह खून की बढ़ी है मांग आजकल

कभी बनारस , कभी दिल्ली तो कभी मुम्बई
हर जगह धमाकों की बरसात है आजकल

आखिर क्यूँ नहीं पसिजता दिल उन आतंकियों का
जिनके घरों में है बालकों की किलकारियां आजकल

खून पीना बन गया है फितरत सियासत का
लोगों के ग़म भी पिने की जरूरत है इसे आजकल

गैर मुल्की सियासत का कहीं हम न होजायें शिकार
इसलिए हमे काफी बच के रहने की ज़रूत है आजकल॥

10 comments:

  1. bahut sundar prastuti... kal aapka blog charchamanch par hoga... aabhaar...

    aap charchamanch par aur mere blog me aa kar apne vichar jaroor likhiyega ,.

    http://chachamanch.blogspot.com
    http://amritras.blogspot.com

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  2. वाह!!!वाह!!! क्या कहने, बेहद उम्दा

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  3. बहुत अच्छे भाव हैं...थोड़ी-सी मेहनत करेंगे तो शेर बहुत खूबसूरत हो जाएंगे....
    इस खूबसूरत ग़ज़ल के साथ आपका स्वागत है...

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  4. अफ्सर जी आदाब !
    मैं वीणा जी से सहमत हूँ....आप की भावनाएं बहुत ही पवित्र हैं ...
    आगे लेखन जारी रखिये ... शुभकामनाएं

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  5. सुन्दर भाव और सुन्दर अभिव्यक्ति...

    लिखते रहें इसी तरह ताकि संवेदनाएं जग पायें.....

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  6. इस बात में कोई भी दो राय नहीं है कि लिखना बहुत ही अच्छी आदत है, इसलिये ब्लॉग पर लिखना सराहनीय कार्य है| इससे हम अपने विचारों को हर एक की पहुँच के लिये प्रस्तुत कर देते हैं| विचारों का सही महत्व तब ही है, जबकि वे किसी भी रूप में समाज के सभी वर्गों के लोगों के बीच पहुँच सकें| इस कार्य में योगदान करने के लिये मेरी ओर से आभार और साधुवाद स्वीकार करें|

    अनेक दिनों की व्यस्ततम जीवनचर्या के चलते आपके ब्लॉग नहीं देख सका| आज फुर्सत मिली है, तब जबकि 14 फरवरी, 2011 की तारीख बदलने वाली है| आज के दिन विशेषकर युवा लोग ‘‘वैलेण्टाइन-डे’’ मनाकर ‘प्यार’ जैसी पवित्र अनुभूति को प्रकट करने का साहस जुटाते हैं और अपने प्रेमी/प्रेमिका को प्यार भरा उपहार देते हैं| आप सबके लिये दो लाइनें मेरी ओर से, पढिये और आनन्द लीजिये -

    वैलेण्टाइन-डे पर होश खो बैठा मैं तुझको देखकर!
    बता क्या दूँ तौफा तुझे, अच्छा नहीं लगता कुछ तुझे देखकर!!

    शुभाकॉंक्षी|
    डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’
    सम्पादक (जयपुर से प्रकाशित हिन्दी पाक्षिक समाचार-पत्र ‘प्रेसपालिका’) एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
    (देश के सत्रह राज्यों में सेवारत और 1994 से दिल्ली से पंजीबद्ध राष्ट्रीय संगठन, जिसमें 4650 से अधिक आजीवन कार्यकर्ता सेवारत हैं)
    फोन : 0141-2222225(सायं सात से आठ बजे के बीच)
    मोबाइल : 098285-02666

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  7. उत्तम प्रस्तुति. शुभकामनाएं...

    हिन्दी ब्लाग जगत में आपका स्वागत है, कामना है कि आप इस क्षेत्र में सर्वोच्च बुलन्दियों तक पहुंचें । आप हिन्दी के दूसरे ब्लाग्स भी देखें और अच्छा लगने पर उन्हें फालो भी करें । आप जितने अधिक ब्लाग्स को फालो करेंगे आपके अपने ब्लाग्स पर भी फालोअर्स की संख्या बढती जा सकेगी । प्राथमिक तौर पर मैं आपको मेरे ब्लाग 'नजरिया' की लिंक नीचे दे रहा हूँ आप इसका अवलोकन करें और इसे फालो भी करें । आपको निश्चित रुप से अच्छे परिणाम मिलेंगे । धन्यवाद सहित...
    http://najariya.blogspot.com/

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  8. इस सुंदर से चिट्ठे के साथ आपका हिंदी चिट्ठा जगत में स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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  9. AGE JAO GE BABU ESI TARAH MAN LAGA KAR KAM KARTEY RAHO BA BAHAI AESAR AB LAG RAHEE HO ASLI HINDUSTANI THANK`S

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