दिल कहना तो बहुत कुछ चाहता है, मगर सब कहना मुम्किन नहीं, बातें होती रहेंगी...
Wednesday, February 9, 2011
मंजिल
मंजिल
भटक रहा हूँ मैं अपने अस्तित्व के तलाश में कभी तो मिलेगी मंजिल बस इसी आस में मुक्त पवन में उन्मुक्त गगन में कर रहा हूँ विचरण उसे न पा सका तो हे! प्रभु आऊंगा आप की शरण में क्यूंकि आप ही में है वह शक्ति जो दूर कर सकती है मेरी आसक्ति।
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