- एम अफसर खान सागर
बाबा कीनाराम जी।
औघड़ सन्त किनाराम जी को उत्तर भारत के अघोरपंथ के प्रवर्तक आचार्य के रूप में जाना जाता है। बाबा कीनाराम जी का जन्म सम्वत् 1658 (सन् 1601) के भद्रमास के कृष्णपक्ष की चतुदर्षी तिथि को सुबह सुर्योदय के समय वाराणसी से लगभग 32 किमी0 पूर्व चन्दौली जनपद के महाईच परगना के रामगढ़ ग्राम में श्री अकबर सिंह जी के घर हुआ था । चूंकि अकबर सिंह को बहुत दिनों बाद पत्र रत्न की प्राप्ति हुई इसलिए पुरोहितों ने अकबर सिंह को परामर्ष दिया कि पुत्र दीर्घजीवी हो और पृथ्वी पर अपनी कीर्ति फैलावे इसलिए बालक को किसी के हाथ बेच कर ‘‘ कीन ’’ (खरीद) लें। पुरोहितों के इस परामर्श के अनुसार ही बालक का नाम कीनाराम रखा गया। शिव राषि के कारण वैष्णव लोग बाबा कीनाराम को शिवाराम के नाम से जानते हैं।
बचपन में ही कीनाराम जी की रूचि सांसारिक कार्यों में नहीं थी। उनके असाधारण व्यवहार से परिवार के लोग प्रायः अचम्भित रहते। कीनाराम बचपन से ही साधु बनने की बात किया करते थे इस लिए आप के काफी विरोध के बाद भी 12 वर्ष की अवस्था में ही आपको वैवाहिक बन्धन में जकड़ दिया गया। जब आप केवल 15 वर्ष के थे तभी आपके गौना का दिन निष्चित कर दिया गया। गौना के एक दिन पूर्व ही आपने अपनी माँ से दूध-भात खाने को मांगा (दूध - भात मृतक कर्म के अवसर पर ग्रहण किया जाता है), माँ ने इसे अशुभ मानकर दही भात खाने का आग्रह किया मगर बालहठ के आगे उनकी ना चली और दूध-भात खाने को दिया। इस घटना के कुछ समय बाद ही यह समाचार आया कि आप की पत्नि कात्यायनी देवी का स्वर्गवास हो गया है। इस घटना का युवा कीनाराम पर बुरा असर पड़ा और संसार से तीव्र वैराग उत्पन्न हुआ। कुछ समय बाद आपके माता का भी स्वर्गवास हो गया तथा आप अचानक एक दिन घर छोड़ कर निकल गये।
रामगढ-चंदौली में कीनाराम जी का मठ।
घर छोड़ने के बाद कीनाराम जी गाजीपुर के कारों ग्राम से गुजर रहे थें कि रास्ते में एक बुढ़िया रोती मिली। निर्धन बुढ़िया के पास एकमात्र पुत्र था जो कि जमींदार द्वारा लगान न दिये जाने के कारण दण्डित किया जा रहा था। बुढ़िया के संताप के कारण बाबा कीनाराम उस जमींदार के पास पहुँच कर बच्चे को छोड़ने के लिए आग्रह करने लगे लेकिन लोभी जमींदार ने बाबा की बात मानने से इन्कार कर दिया। तब बाबा ने जमींदार को वहीं जमीन खोदने को कहा जहाँ बच्चा बैठा था खोदने पर स्वर्ण मुद्रायें मिली ऐसा देख जमींदार बाबा के पैरों पर गिरकर क्षमा की याचना करने लगा तथा बुढ़िया ने भी अपने इकलौते पुत्र को बाबा को समर्पित कर दिया। आगे चलकर यही बालक बाबा बीजाराम के नाम से प्रसिद्ध हुआ ।
बाबा कीनाराम को खड़ाऊ पहन कर चलते हुए पृथ्वी पर पैर टिकने और एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचने की सिद्धी प्राप्त थी। कारों ग्राम से प्रस्थान कर बाबा कीनाराम गिरनार की तरफ चल दिये। यहाँ पर आपकी मुलाकात अघोरमत के महान समर्थक बाबा दत्तात्रेय से हुयी। महातमा दत्तात्रेय ने आपकी कठिन परीक्षा ली और योग्य पा कर आपको दीक्षित कर एक पुरवा और एक लगोट देकर काषी में बाबा कालूराम के पास भेजा। जब कीनाराम जी कालुराम जी के पास काषी के हरिष्चन्द्र घाट पर पहुँचे तो कालूराम जी खोपड़ी पर सिद्धी कर रहे थे तो आपने कालूराम से प्रष्न किया कि यह शव जो किनारे लगा है मुर्दा है या जिन्दा ? तब कालूराम ने कहा कि मुर्दा इसपर कीनाराम जी ने शव से कहा कि ‘‘ऐ रामजीयावना उठ काहें सो रहा है’’ और मुर्दा उठ गया और बाबा के चरणों पर गिर गया। कालूराम जी तो सब जानते थे लेकिन फिर भी उन्होने कीनाराम से कुछ खाने को मांगा। इस पर बाबा ने गंगा जी को आदेष किया और उसी क्षण एक मछली सामने जल रहे चिता में आकर गिर पड़ी और दोनों अवघड़ संतों ने भुनी मछली खाया। अब परीक्षा ले चुके कालूराम जी ने गुरू दत्तात्रेय द्वारा दिया गया सोटा बाबा कीनाराम को सौंपा। गिरनार के बाद आप कराची पाकिस्तान के सुदूर पहाड़ी स्थित हिंगला देवी मन्दिर पहुँच कर काफी दिनों तक देवी की आराधना की एक दिन अचानक किनाराम जी ने देवी का असली रूप देखने की हठ ठान ली भक्त के हठ पर देवी ने उन्हे अपना असली रूप दिखाया और कहा कि मैं ही हिंगला देवी हूँ और अब मैं यहाँ से क्री कुण्ड चली जाऊँगी तुम भी वहीं चलो इसपर बाबा किनाराम क्री कुण्ड वाराणसी चले आये।
बाबा कीनाराम के चमत्कार की अनेक घटनायें प्रचलित हैं जिसमें गाजीपुर के भुडकुड़ा में जल का दूध बना देना, गिरनार से लौटते वक्त राजा के सिपाहीयों द्वारा पकड़े जाने पर जेल में अपने आदेष पर चक्की चलवाना, सैदपुर में गरीब दीपुआ को उसके रेवड़ी सत्कार पर प्रसन्न होकर दीपचन्द्र बना देना आदि। बाबा कीनाराम शैव, वैष्णव एवं अघोरपंथ तीनों सम्प्रदायों में दीक्षित होने के कारण तीनों का सम्मिश्रण करने में पूर्ण सफल हुये। वैष्णव रीति से रामोपासक तथा अघोरपंथ से मद्य-मांस भक्षी। आप जात-पात के भेद-भाव से पूर्ण रूप से मुक्त थे। आप कहते थे कि ‘भाई जतियों क खईली, कु जतियों क खईली तबो ना अघइली’। मूर्ति पूजा इनके सम्प्रदाय में पूर्ण रूप से निषिद्ध है। किनाराम जी महाराज ने अनेक अघोरपीठ की स्थापना की जिसमें अघोर सिद्धपीठ, रामगढ़, क्री-कुण्ड, वाराणसी, देवल, गाजीपुर प्रमुख है। इनके नाम पर मुड़ीयार, सैरपुर में अघोराचार्य बाबा किनाराम सेवा संस्थान व एक चिकित्सालय की स्थापना की गयी है। जहाँ निःषुल्क इलाज किया जाता है। काषी में इस सम्प्रदाय से सम्बन्धित षिवाला क्षेत्र में क्रीं-कुण्ड है। इस स्थान पर इस पंथ की प्रधान गद्दी लगभग 400 वर्ष पूर्व बाबा कीनाराम जी ने ही स्थापित किया था। इस स्थान पर हर वर्ष भादो माह में लोलाक छठ का मेला लगता है तथा मान्यता है कि क्रीं-कुण्ड में स्नान करने से चर्म रोगों से मुक्ति मिलती है।
गाजीपुर में कीनाराम जी का मठ।
बाबा कीनाराम जी सामाजिक उत्तरदायित्व के साथ-साथ अलौकिक शक्तियों का प्रयोग कर गरीब, दुखियों, रोगीयों और बहिष्कृत व्यक्तियों की सेवा करना अपना परम कर्तव्य समझते थें। आप स्वयं कहा करते कि मैं उन सभी मनुश्यों को आदर और प्यार देता हूं जो उपेक्षित हैं और जो अपनी की हुयी गलतीयों को सुधारने के लिए उत्सुक हैं। क्रीं-कुण्ड स्थल में आज भी बाबा कीनाराम का तख्त सुरक्षित है तथा उनके द्वारा आज से लगभग 400 वर्ष पूर्व प्रज्जवलित धूनी उसी प्रकार से जल रही है। यहाँ पर आपकी समाधी निर्मित है। मान्यता है कि अवघड़ सन्त बाबा कीनाराम जी ने अपने भौतिक शरीर को सन् 1772 में त्यागा था।
अवघड़ सन्त बाबा कीनाराम जी के जन्म स्थान रामगढ़ (चन्दौली) में भी अघोर सिद्ध पीठ है। बाबा किनाराम की जन्म स्थली होने के कारण इस सिद्धपीठ का महत्व ज्यादा है। विषाल बरगद का वृक्ष आज भी उसी तरह तेज बरसा रहा है जैसे बाबा के साधना के बक्त। पूजा के वक्त बाबा किनाराम के मठ में दिव्य शक्ति की अनुभूती होती है। बाबा किनाराम द्वारा इस मठ में एक कूप का निर्माण कराया गया था। कहा जाता है कि निर्माण के समय ईंट कम हो गया था तब बाबा ने पास रखे गोहरे लगाने का आदेष दिया। आदेष वो भी बाबा का गोहरे ईंट में बदल गया। जो आज भी दर्षनीय है, इसे राम सरोवर के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि राम सरोवर में स्नान मात्र से रोगों से मुक्ति मिलती है। रविवार व मंगलवार को किनाराम स्नान के लिए लोागें की भीड़ लगती है। स्थानीय निवासी धनंजय सिंह बताते हैं कि ‘बाबा एक बार इसमें कूद कर अदृष्य हो गये थें।’ अघोर सिद्धपीठ रामगढ़ में आज भी बाबा का सिंहासन है और पास में इनके षिष्य बीजाराम जी का भी सिंहासन है। जहाँ आज भी धूनी उसी तरह प्रज्ज्वलित है। अघोर सिद्धपीठ रामगढ़ में प्रति वर्ष आपके जन्म दिन पर तीन दिवसीय ‘जन्मोत्सव समारोह’ का आयोजन किया जाता है। जन्मोत्सव समारोह में दूर-दूर से विद्धान, गायक, संगीतकार, वादक एवं कलाकार आतें हैं। जन्मोत्सव समारोह के दौरान निःषुल्क भोजन व रहने का इन्तजाम होता है। जन्मोत्सव समारोह में प्रदेष के मन्त्री, सांसद एवं विधायक समेत हजारों की संख्या में प्रबुद्ध नागरिक मौजूद रहते है। मठ में विषाल मन्दिर है जिसमें वर्ष भर पूजा-अर्चना का कार्यक्रम चलता है। यहाँ पर लोग दहेज रहित विवाह करते हैं। अघोर पंथ के प्रवर्तक बाबा किनाराम जी ने समाज को सामाजिक सौहार्द व भाईचारे का पाठ पढ़ाया है। इसलिए बाबा के मठ में लोग धर्म व सम्प्रदाय से उपर उठ कर उनके दर्षन हेतु आते हैं। लोगों को इस बात की उम्मीद रहती है कि उनकी मुरादें बाबा के मठ में जरूर पूरी होगी और होता भी हैं।
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