Saturday, February 26, 2011

सखी री, छायो ऋतुराज...

ज़रा सैर किया जाये....

सरसों के पीले फूलों से अमराईयों तक - बाग़-बगीचों, बहारों तक छा गयी है बसंत की धूम

चरों जानिब धूम है हरियाली और बसंत का

मौसम का चीज़ है- हरे मटर की बात ही कुछ और है

अरहर के झाड

हरियाली देख जी तो लोटने का कर रहा था

माँ गंगा का गोद काफी शीतल और निर्मल है

नवका विहार का आनंद काफी सुखद

मौजों पर खेल-तमाशा

उम्र छोटी तजुर्बा बड़ा- प्रदीप भी चलता है कस्ती


मै बड़ा या तुम- आसिफ शायद ताड़ से यही कह रहे हों

ये हैं वसी भाई- बकरी का पेट भरने के लिए उसे चराने निकले

भाग्य को कोसती भागीरथी- गंगा में घटता जल जल स्तर चिंता का विषय

ये नज़ारे दिल को सुकून देने वाले हैंज़िन्दगी कैसे कट जाये किसको पताकल क्या होगा,
इसलिए आज ही मौजां कर लें
आपको कैसा लगाज़रूर बताएं

दुआओं में ज़रूर याद रक्खें, आपका अपना...
एम अफसर खान सागर



3 comments:

  1. majedar dost... dil bag bag ho gya... kas hamare v din aise hote...

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  2. आनन्द आ गया प्रकृति के ये नजारे देखकर.

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  3. mai bhi hota kas terey is afsano mey, tumney dekha khoyab jo sarey armano key u to khud chaha tha mai ki kuchh karu!khushi hui ? wo sab tum kar daley
    Thank`s

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