Thursday, February 17, 2011

शहादत की अमर गाथा

16 अगस्त 1942 का धानापुर थाना कांड

  • एम अफसर खान सागर
शहीदों की याद में बना शहीद स्तम्भ, धानापुर-चंदौली

स्वतंत्रता संग्राम के आखिरी दौर में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के ‘करो या मरो’ के आह्नान पर 16 अगस्त 1942 को महाईच परगना के आन्दोलनकारीयों द्वारा जो कुछ किया गया वह कामयाबी और बलिदान के नजरीये से संयुक्त प्रान्त (उत्तर प्रदेश) व भारत के बड़े कांडों में से एक था, लेकिन इस कांड की उतनी चर्चा नहीं हो पाया जितनी होनी चाहिए थी क्योंकि इसकी प्रमुख वजह यह थी कि खुफिया विभाग द्वारा ब्रिटिश गवर्रनर को जो रिपोर्ट भेजा गया उसमें धानापुर (वाराणसी) के स्थान पर चानापुर (गाजीपुर) था। इतिहासकार डॉ0 जयराम सिंह बताते हैं कि ‘‘ राष्ट्रीय अभिलेखागार नई दिल्ली की होम पोलीटीकल फाईल, 1942 में भी चानापुर (गाजीपुर) का उल्लेख है। जिसका संसोधन 1992 में किया गया। 16 अगस्त 1942 का धानापुर थाना कांड इस वजह से भी चर्चित नहीं हो पाया। ’’

इतिहासकार डॉ जयराम सिं

वाराणसी से 60 किलोमीटर पूरब में बसा धानापुर सन् 1942 में यातायात के नजरीये से काफी दुरूह स्थान था। बारिश में कच्ची सड़कें कीचड़ से सराबोर हो जाया करतीं थीं तथा गंगा नदी बाढ़ की वजह से दुर्लघ्य हो जाया करती थी। करो या मरो के उद्घोश के साथ 08 और 13 अगस्त 1942 को वाराणसी में छात्रों और नागरिकों ने ब्रिटिश हुकूमत के ताकत को पूरी तरह से जमींदोज करके सरकारी भवनों पर राष्ट्रध्वज तिरंगा फहरा कर आजादी का जश्न मनाया। जैसे ही यह खबर देहात अंचल में पहुंची तो वहां की आंदोलित जनता भी आजादी के सपनों में डूबकर समस्त सरकारी भवनों पर तिरंगा फहराने के लिए उत्सुक हो गया। महाईच परगना में सरकारी भवनों पर तिरंगा फहरासने का कार्यक्रम कामता प्रसाद विद्यार्थी के नेतृत्व में 09 अगस्त 1942 से ही शुरू हो गया था। 12 अगस्त 1942 को गुरेहूं सर्वेकैम्प पर, 12 अगस्त 1942 को चन्दौली के तहसील, थाना, डाकघर समेत सकलडीहां रेलवे स्टेषन पर तथा 15 अगस्त 1942 की रात में धीना रेलवे स्टेषन पर धावा बोले के बाद महाईच परगना में केवल धानापुर ही ऐसी जगह थी जहां सरकारी भवनों पर तिरंगा फहराना बाकी था।
अब आजादी का ज्वार लोगों को कंपा रहा था, लोग स्वतंत्र होने के लिए उतावले थें तथा कामता प्रसाद विद्यार्थी महाईच के गांवों में घूम-घुम कर लोगों को प्रोत्साहित कर रहे थें। 15 अगस्त 1942 को राजनारायण सिंह व केदार सिंह धानापुर पहुंच कर थानेदार को शान्तिपूर्वक तिरंगा फहराने के लिए समझाया मगर ब्रिटिश गुलामी में जकड़ा थानेदार किसी भी हाल में तिरंगा फहराने को राजी नहीं हुआ। तब जाकर 16 अगस्त 1942 को पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार महाईच परगना के लोग सुबह से ही कालीया साहब की छावनी पर एकत्र होने लगें। सरकारी आंकड़े के मुताबिक आन्दोलनकारीयों की संख्या प्रातः ११.00 बजे तक एक हजार तथा तीन बजे तक पांच हजार तक थी। तीन बजे के करीब विद्यार्थी जी, राजनारायण सिंह, मन्नी सिंह, हरिनारायण अग्रहरी, हरि सिंह, मुसाफिर सिंह, भोला सिंह, राम प्रसाद मल्लह आदि के नेतृत्च में करीब पांच हजार लोगों का समूह थाने की तरफ बढ़ा।
१६ अगस्त १९४२ के धानापुर थाना का वर्तमान स्वरुप

बाजार में विद्यार्थी जी ने लोगों से निवेदन किया कि वे अपनी-अपनी लाठीयां रखकर खाली हाथ थाने पर झण्डा फहराने चलें क्योंकि हमारा आन्दोलन अहिंसक है। पलक झपकते ही आजादी के खुमार में आहलादित जनता थाने के सामने पाकड़ के के सामने पहुंच गयी। महाईच परगना के सभी गांव के चौकीदार लाल पगड़ी बांधे बावर्दी लाठीयों के साथ तैनात थें उनके ठीक पीछे 7.8 सिपाही बन्दुके ताने खड़े थें तथा इनका नेतृत्व थानेदार अनवारूल हक नंगी पिस्तौल लिए नीम के पेड़ के नीचे चक्कर काटकर कर रहा था। थाने का लोहे का मुख्य गेट बन्द था। राजनारायण सिंह ने थानेदार से शान्तिपूर्वक झण्डा फहराने का निवेदन किया, लेकिन वह तैयार नहीं हुआ। थानेदार ने आन्दोलनकारीयों को चेतावनी देते हुए कहा कि झण्डा फहराने की जो जुर्रत करेगा उसे गोलियों से भून दिया जायेगा। इतना सुनना था कि कामता प्रसाद विद्यार्थी ने लोगों को ललकारते हुए कहा कि ‘आगे बढ़ो और तिरंगा फहराओ, आने वाले दिनों में नायक वही होगा जो झण्डा फहरायेगा। इसके बाद वे स्वयं तिरंगा लेकर अपने साथियों के साथ थाना भवन की तरफ बढ़े।
कामता प्रसाद विद्यार्थी के साथ रघुनाथ सिंह, हीरा सिंह, महंगू सिंह, रामाधार कुम्हार, हरिनराय अग्रहरी, राम प्रसाद मल्लाह व शिवमंगल यादव आदि थें। ज्यों ही ये लोग लोहे की सलाखेदार गेट कूद कर थाने में प्रवेश किया त्यों ही थानेदार ने सिपाहीयों को आदेश दिया फायर और वह पिस्तौल से हमला बोल दिया। गोली विद्यार्थी जी के बगल से होती हुयी रघुनाथ सिंह को जा लगी। पलक झपकते ही विद्यार्थी जी ने झण्डा फहरा दिया। बन्दूकें गरज रहीं थीं तथा गोलियां भारत मां के वीर सपूतों के सीनों को चीरती हुयी निकल रहीं थीं जिससे कि सीताराम कोईरी, रामा सिंह, विश्वनाथ कलवार, सत्यनारायण सिंह आदि गम्भीर रूप से घायल हुये तथा हीरा सिंह व रघुनाथ सिंह मौके पर ही शहीद हो गयें।

१६ अगस्त १९४२ का धानापुर थाना जहाँ गोली चली थी

अब तक की घटना जनता मूक दर्शक बनकर देख रही थी मगर भारत माता के वीर सपूतों को तड़पता देख जनता उग्र हो गयी। राजनारायण सिंह का आदेश पाकर हरिनारायण अग्रहरी ने चालुकता पूर्वक थानेदार को पीछे से बाहों में जकड़ लिया तथा पास ही खड़े शिवमंगल यादव ने थानेदार के सिर पर लाठी का भरपुर वार किया, जिससे कि तिलमिलाया थानेदार अपने आवास की तरफ भागा मगर आजादी के मतवालेपन में उग्र जनता ने उसे वहीं धराषायी कर दिया। अब तो आन्दोलन अहिंसक हो चुका था उसकी धधकती ज्वाला में हेड कांस्टेबुल अबुल खैर, मुंशी वसीम अहमद और कांस्टेबिल अब्बास अहमद को मौत के घाट उतार दिया। बाकी सिपाही व चौकीदार स्थानीय होने की वजह से भागने में कामयाब हुये।


शहीदों की याद में बना अमर वीर इंटर कॉलेज धानापुर-चंदौली

इस विनाशलीला के बाद उग्र क्रान्तिकारीयों ने सभी सरकारी कागजातों और सामानों व टेबुल कुर्सीयों को इकठ्ठा कर थानेदार व तीन सिपाहियों की लाषों को उसी में रखकर जला दिया। इसके बाद आजादी के मतवालों का जूलूस काली हाउस व पोस्ट ऑफिस पर भी तिरंगा फहरा दिया। तकरीबन रात आठ बजे क्रान्तिकारीयों ने अधजली लाशों को बोरे में भर कर गंगा की उफनती धाराओं में प्रवाहित कर दिया। बरसात की काली रात में गम्भीर रूप से घायल महंगू सिंह को इलाज के वास्ते पालकी पर बिठा कर कामता प्रसाद विद्यार्थी व अन्य लोगों ने 13 किमी0 दूर सकलडीहां स्थित डिस्पेंसरी पहुंचे मगर गम्भीर रूप से घायल भारत माता के वीर सपूत महंगू सिंह ने दम तोड़ दिया। 17 व 18 अगस्त तक धानापुर समेत पूरी महाईच की जनता ब्रिटिश हुकूमत की गुलामी से आजाद थी। 17 अगस्त तक इस महान कांड की चर्चा प्रदेष व देष में गूंज उठा। 18 अगस्त को डी.आई.जी. का दौरा हुआ चूंकि मौसम बारिश का था तो सैनिकों को पहुंचने में देरी हुयी। सैनिकों को पहुंचते ही पूरे महाईच में कोहराम मच गया। रात के वक्त छापों का दौर शुरू हुआ। लोगों को पकड़ कर धानापुर लाया जाता तथा बनारस के लिए चालान कर दिया जाता। इस तरह तीन सौ लोगों का चालान किय गया और उन्हे बुरी तरह प्रताड़ित किय गया। धानापुर थाना कांड के ठीक नौ दिन बाद 25 अगस्त सन् 1942 को पुनः थाना नग्गू साहू के मकान में अस्थायी रूप से स्थापित किया गया। इस बीच जले हुये थाना परिसर की मरम्मत करा कर 06 सितम्बर सन् 1942 को पुनः थाना अपने स्थान पर स्थापित हुआ।
16 अगस्त सन् 1942 का धानापुर थाना कांड भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के बड़े कांडों में से है मगर शाब्दिक गलती धानापुर के स्थान पर चानापुर की वजह से इतिहास में अपना स्थान नहीं दर्ज कर पायी जिससे कि यह प्रसिद्ध न हो पाया। लेकिन राष्ट्र के नाम पर कुर्बान होने वालों को लोग हमेशा याद रखते हैं। इसीलिए प्रत्येक वर्ष 16 अगस्त को इन शहीदों की मजारों पर मेला लगता है और इन्हे श्रद्धांजली अर्पित की जाती है। किसी शायर ने क्या खूब कहा है कि -
शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले,
वतन पर मरने वालों का यहीं बाकी निशाँ होगा।



1 comment:

  1. Dhanapur Incident 1942 which today makes out an important chapter in the freedom struggle of our country had been a missing chapter since 1986-87;and which first flashed beyond local limits due to the initiative taken by the leader of this movement Sri Kamata Prassad Vidyarthyji.
    Vidyarthyji met me in 1985-86 with one of his aids at the Govt Degree College Chandauli. He had picked up my name from a news regarding History and Historical Writing Association, U.P., which had then appeared in Varanasi newspapers. He was then touching 90.He wanted from me to write a history of the Mahaich Paragana in which Dhanapur falls. He told me that he had been trying this far many years with a number of Historians of B.H.U., Kashi Vidyapeeth etc. Although historians promised but the mission remained unstarted. I took up and with confidence.. The mission was over... Vidyarthyji saw the manuscript , appreciated, blessed me and my associates and promised to get it published. But unfortunately he could not live long to see his dreams.I collected the material from Sri Jaichand ji...and after many years the it appeared in Book form through the help of the Old Boys Association of the U.P.College, Varanasi.
    Mr. Afsar has been my favourite student at the graduation level. I am extremely happy to see growing up into a mature journalist trying to make public the local and regional perspectives in interesting style. His effort is highly commendable and it will certainly help in awakening the sense of history among the people of the area. I hope the local and regional aspects of history will inculcate strong feelings of unity, harmony and love among the people of our country...
    Thank you Afsar... thanks a lot.. Keep on... My blessings...

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