साथी हो न पायी बात...
साथी हो न पायी बात,
बोलने पाए न मुझसे छूट गया लो साथ
साथी छूट गया लो साथ ।
सुधि तुम्हारी रोज़ आती,
हर सुबह हर शाम आती,
याद आती जब अँधेरी हो अकेली रात,
साथी हो अँधेरी रात।
हो न पाया गीत पूरा,
लय अधूरी, स्वर अधुरा,
भाव मेरे तुम्हारे रह गए अज्ञात,
साथी रह गए अज्ञात।
तुम कला के प्रिय पुजारी,
किन्तु क्या हस्ती हमारी,
हम जामें तुम आसमान, यदि सांझ हूँ तुम प्रात,
'साथी सांझ हम तुम प्रात।
आज दिल कहता अभागे
झुक गया तू क्यूँ न आगे,
क्यूँ न परिचय के लिए तू ने बढाया हाथ
साथी झुक गया है माथ।
प्यार करना, प्रेम खोना और रोना,
गलतियों क बूझ ढ़ोना,
बेहया इस ज़िन्दगी में सब पुरानी बात।
साथी सब पुरानी बात।
जानम से तक़दीर खोती,
बदनसीबी देख रोती,
पूछते थक प्राण पंछी, शेष कितनी रात,
साथी शेष कितनी रात।
मैं कहूँ क्या हाल अपना,
हो गया सुख चैन सपना,
कर लिया पत्थर कलेजा, सह लिए आघात,
साथी सह लिए आघात।
अब न गाता गान गीला,
बन चुका मैं एक टीला,
कट रहीं बरसे महीने, कट रहे दिन सात
कट रहे दिन सात।
आज जर्जर प्राण तन मन ,
शून्य जीवन, शून्य वरदान,
तब बयां क्या हो सके, मुझसे मज़े की बात,
साथी क्या मज़े की बात।
पर सफ़र के बीच देखे,
अति स्नेही तुम सरीखे,
तब न रूकती आंसुओं की नयन की बरसात,
साथी नयन की बरसात।
मत बुरा कुछ मान लेना,
हंस क्षमा का दान देना,
यह क्षमा न मुर्ख करता, मुर्खता की बात,
साथी मुर्खता की बात।
दूर प्रिय, घर दूर मेरा,
आज यों परदेश डेरा,
याद आती सब घिरी बादल भरी बरसात,
साथी बादल भरी बरसात।
निर्गुण जी की ये रचना एल उमाशंकर जी के सहयोग से निर्गुण रचनावली से साभार है।
एम अफसर खान सागर
09889807838
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