Sunday, February 27, 2011

अज़ब-गज़ब

शान्ति के लिए पत्थरबाज़ी...

बात जरूर अटपटी लगेगी, शान्ति के लिए पत्थर बाजी। लोग क्या नहीं करते हैं समाज में सौहार्द और शान्ति के लिए। जी हां! चंदौली के दो गाँव महुआरी और विशुपुर के लोग शान्ति की खातिर हर वर्ष नाग पंचमी के अवसर पर शान्ति की खातिर एक दुसरे पर पत्थर, कीचड़ फेकते हैं। पेश है इसी पर आधारित 26 नवम्बर 2010 के साप्ताहिक पत्रिका इंडिया न्यूज़ में छपी, एम अफसर खान सागर की ये रिपोर्ट.....

Saturday, February 26, 2011

सखी री, छायो ऋतुराज...

ज़रा सैर किया जाये....

सरसों के पीले फूलों से अमराईयों तक - बाग़-बगीचों, बहारों तक छा गयी है बसंत की धूम

चरों जानिब धूम है हरियाली और बसंत का

मौसम का चीज़ है- हरे मटर की बात ही कुछ और है

अरहर के झाड

हरियाली देख जी तो लोटने का कर रहा था

माँ गंगा का गोद काफी शीतल और निर्मल है

नवका विहार का आनंद काफी सुखद

मौजों पर खेल-तमाशा

उम्र छोटी तजुर्बा बड़ा- प्रदीप भी चलता है कस्ती


मै बड़ा या तुम- आसिफ शायद ताड़ से यही कह रहे हों

ये हैं वसी भाई- बकरी का पेट भरने के लिए उसे चराने निकले

भाग्य को कोसती भागीरथी- गंगा में घटता जल जल स्तर चिंता का विषय

ये नज़ारे दिल को सुकून देने वाले हैंज़िन्दगी कैसे कट जाये किसको पताकल क्या होगा,
इसलिए आज ही मौजां कर लें
आपको कैसा लगाज़रूर बताएं

दुआओं में ज़रूर याद रक्खें, आपका अपना...
एम अफसर खान सागर



Wednesday, February 23, 2011

शहरनामा

मुगलसराय: रेल से धड़कता शहर

  • एम अफसर खान सागर


मुगालासरा रेलवे स्टेशन

मुगलासराय रेलवे स्टेशन पर बिछा रेलवे लाइन का संजाल

डी आर एम कार्यालय मुगलसराय

आप अगर भारत के महत्वपूर्ण स्थलों के भ्रमण की इच्छा रखते हैं तो आपका सामना मुगलसराय से न हो ये कैसे हो सकता है। विष्व की प्राचीन नगरी काशी (वाराणसी) देश की सांस्कृतिक व धार्मिक राजधानी है और मुगलसराय पूर्व और उत्तर भारत के लिए उसका प्रवेश द्वार है। कहीं आप गया या फिर बोध गया जाना चाहते हैं या फिर आपकी इच्छा जॉब चनिक द्वारा बसाये शहर कोलकाता जाना हो तो आप बस या रेल मार्ग से जायें, मुगलसराय से बच पाना नामुमकिन है। मुगलसराय रेलवे का ऐसा चेजिंग प्वाइंट है कि आपके यात्रा संस्मरणों में न चाहते हुए भी चुपके से घुस जाता है।
वाराणसी जो कि मन्दिरों और घाटों का नगर है उससे 10 किमी0 पूर्व में उत्तर प्रदेश के चन्दौली जनपद का मिनी महानगर माना जाता है। विश्व में अपनी अलग पहचान रखने वाला मुगलसराय एशिया का सबसे बड़ा रेलवे यार्ड व एशिया की विशालतम कोयला मण्डी यहीं चंधासी में स्थित है। अपने अतीत में अनेकों रहस्य समेटे यह नगर बहुसांस्कृतिक, बहुवर्गीय व बहुधार्मिक पहचान रखता है। इसके नामकरण के बारे मान्यता है कि मुगलकालीन सम्बन्धों की वजह से इसका नाम मुगलसराय पड़ा। मुगलकालीन समय में यहां मुगलों की दो सरायें हुआ करती थीं जिसमें मुगलों की सेना व व्यापारी ठहरा करते थें बाकी इन सरायों के पास इनके मनोरंजन के वास्ते वेश्याओं व हिजड़ों का जमावड़ा हुआ करता था। इस शहर को बसाने में शेरशाह सूरी बड़ा योगदान है क्योंकि पहले ग्रान्ट ट्रंक ने ही इसकी भाग्य लकीर खींची थी। मुगलसराय राष्ट्रीय राज मार्ग नम्बर दो पर बसा है। मुगलसराय दिल्ली व हावड़ा रेल लाइन के बीच स्थित है। मुगलसराय की पहचान सादगी व सरलता के प्रतिमूर्ति व राष्ट्र के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी के जन्म स्थान के रूप में है तथा एकात्म मानववाद के प्रणेता व महापुरूष पण्डित दीनदयाल उपाध्याय जी का पार्थिव शरीर सफेद कपड़े में लिपटा इसी मुगलसराय रेलवे स्टेशन पर मिला जिससे कि इसका दूसरा नाम दीनदयाल नगर भी है।


एशिया की विशालतम कोयला मण्डी में ट्रकों का जमावड़ा

मुगलसराय का जीवन पूरी तरह रेल पर आधारित है। इस शहर को रेल ने बसाया है। रेल इसकी सांसों में, धड़कनों में है। रेल की प्रतीक ध्वनि छुक-छुक यहां के लोगों के नसों में सुनायी देती है। इस शहर को रेल ने जीवन व संस्कार दिया है। मुगलसराय में आबादी का बसना रेलवे लाइनों के बिछने के बाद ही शुरू हुआ था। सन् 1862 ई. में हावड़ा से दिल्ली जाने के लिए रेलवे लाइन का विस्तार किया गया इसके बाद सन् 1880 ई. में मुगलसराय रेलवे स्टेशन की इमारत का निर्माण किया गया। तत्पश्चात सन् 1905 ई. में इस भवन का सुधार किया गया तथा सन् 1976 ई. में पण्डित कमलापति त्रिपाठी द्वारा रेल भवन के नवीनीकरण के लिए स्मारक पत्थर रखा गया जो कि सन् 1982 ई. में इसका निर्माण कार्य पूर्ण कर आमजन के लिए खोल दिया गया। मुगलसराय अप्रैल सन् 1978 ई. में पूर्व-मध्य रेलवे का मण्डलीय मुख्यालय बना। मुगलसराय एशिया का सबसे बड़ा रेलवे यार्ड है जिसकी लम्बाई १२.6 किमी0 है तथा इसमें तकरीबन 250 किमी0 लम्बी लाइन बिछी है। इस यार्ड को नियंत्रित करने के लिए 10 ब्लाक केबिन व 11 यार्ड केबिन है।




एल. बी. एस. पी. जी. कोलाज , मुगलसराय उपर और शास्त्री जी की जन्म स्थली नीचे

मुगलसराय में 19 वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में विद्युत लोको शेड की स्थापना की गयी इसमें हावड़ा से दिल्ली तक गया होते हुए ट्रेनों का संचालन होता है। इस विद्युत लोको शेड में करीब 137 रेल इंजन रखने की व्यवस्था है। डीजल लोको शेड की स्थापना सन् 1962 ई. में उत्तर रेलवे के सौजन्य से कराया गया जिसमें मुगलसराय से इलाहाबाद व मुगलसराय से लखनऊ तक डीजललीकरण के लिए अमेरीका की जनरल मोटर ऑफ अमेरीका से 16 ॅक्ड डीजल इन्जन भी उपलब्ध कराया गया। इमसें 72 रेल इन्जनों की रख -रखाव की व्यवस्था है। मुगलसराय स्थित प्लान्ट डीपो का इतिहास काफी पुराना है। इसकी स्थापना मालवीय पुल (इफरीन ब्रीज) के निर्माण के समय स्टोर के रूप में की गयी थी। सन् 1929 ई. में प्लान्ट डिपों इंजीनीयरिंग और मैकेनिकल प्लान्ट को स्टोर के लिए पूर्व रेलवे द्वारा किया गया था जिसमें औजारों के रख - रखाव का काम किया जाता था। प्लान्ट डिपो द्वारा कई पुलों का निर्माण किया गया जिसमें बेली पुल (विवेकानन्द पुल), बराकर पुल, जमुना पुल, सोन पुल तथा डेहरी आसनसोल पुल शामिल है। मुगलसराय आज भारतीय रेल के विशाल संजाल का सबसे प्रमुख केन्द्र है, जिसकी धड़कन रूकी तो समझिए कि भारतीय रेल का नवर्स ब्रेकडाउन होने लगता है। भारतीय रेल के दिल्ली मुख्यालय में मुगलसराय का ओके होना अति आवश्यक है। यही करण है कि अनयास ही रेल मंत्री जी का रूख मुगलसराय की तरफ हो जाता हैं। मुगलसराय से प्रतिदिन 125 ट्रेनों का गुजर होता है जो कि भारत के विभिन्न राज्यों तथा नगरों को जाती हैं। एशिया का सबसे बड़ा यार्ड होने की वजह से यहाँ ट्रेनों का पड़ाव रहता है। मुगलसराय के सामुदायिक जीवन पर निगाह डालने पर पता चलेगा कि यह बहुवर्गीय व बहुधार्मिक शहर है जहां सामाजिक समरस्ता चहुंओर देखने को मिलेगा। मुख्यतः नगर दो भागों में बंटा है पहला नगरपलिका के 25 वार्ड तथा दूसरा रेलवे नगर पंचायत में भी इतने ही वार्ड हैं। आबादी के दृष्टिकोण से 80 प्रतिशत हिन्दु, 13 प्रतिशत मुसलमान, 02 प्रतिशत ईसाई बाकी 05 आबादी में सिख, बौद्ध, बंगाली समेत अन्य जाति के लोग हैं। अमुमन उपभोक्ता प्रधान समाज है फिर भी सामाजिक समरस्ता का आभाव तनिक भी नही देखने को मिलेगा। नगरपालिका अध्यक्ष राजकुमार जायसवाल का मानना है कि ‘‘मुगलसराय के लोगों में उपभोक्तावादी संस्कृति के बावजूद सामाजिक समरस्ता में कोई कमी नहीं है, मुगलसराय के विकास में यहाँ के आम नागरिकों का बहुत बड़ा योगदान है।’’ स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद सन् 1947 ई. में भारत-पाक विभाजन के दौरान यहाँ शरणार्थी सिखों का एक जत्था आकर बस गया जो कि अब मुगलसराय में अपनी व्यावसायिक पकड़ बना चुके हैं।


गुरु द्वारा, मुगलसराय

का मुगलसराय में दो गुरूद्वारा है जिसमें जी0 टी0 रोड स्थित गुरूद्वारा दर्शनीय है जिसमें प्रत्येक दिन इस समुदाय के लोग पूजा -अर्चना करते हैं। इस समुदाय के लोग गुरूनानक जयन्ती व लोहडी का पर्व बड़े हर्ष के साथ मनाते हैं। गुरूद्वारा कमेटी के अध्यक्ष सरदार मोहन सिंह कहते हैं कि ‘‘ भारत-पाक विभाजन के बाद हमारा जीना दोभर हो गया था मगर मुगलसराय की जिन्दादिली की वजह से हम लोग इस शहर में अपना आशियाना बनाकर आराम से जी रहे हैं। इस शहर के लोग काफी जिन्दादिल व सामाजिक समरस्ता के प्रतीक हैं। मुगलसराय विश्व की अनूठी सामुदायिक जीवन की मिशाल है।’’

भारतीय राजनीती के आदर्श पुरुष लाल बहादुर शास्त्री जी

मुगलसराय में ज्यादातर लोग रेल की वजह से आ बसे हैं तथा व्यावसायिक लोगों की तायदाद भी कम नहीं है। यहां भिन्न-भिन्न प्रदेशों के अलग-अलग समुदाय के लोग रहते हैं। जिनकी अपनी अलग संस्कृति हैं। यहां पर मुस्लिम आबादी के धार्मिक क्रिया कलापों के लिए सात मस्जिदें हैं जिसमें जी0 टी0 रोड स्थित जामा मस्जिद प्रमुख है। जहां दूर-दराज से आने वाले मुसाफिर तथा बाजार के लोग नमाज अदा करते हैं। वहीं ईसाई समुदाय के वास्ते चार गिरजाघर हैं जिसमें एक कैथोलिक व तीन प्रोस्टिट चर्च है। रेलवे परिक्षेत्र में स्थापित दो चर्च अंग्रेजों के समय उनकी धार्मिक आवश्यकताओं के लिए बनाया गया था। प्रत्येक वर्ष नवम्बर माह में देश- विदेश से इस समुदाय के लोग यहां इकठ्ठा होते हैं तथा प्रार्थनाएं करते हैं। सन् 1907 ई. में ग्राण्ट ट्रंक रोड के किनारे आर्य समाज के लोगों द्वारा विशाल आर्य समाज मन्दिर की स्थापना की गयी। आर्य समाज के लोगों की हर प्रकार की सामाजिक गतिविधियों का संचालन यहीं से होता है। मन्दिर में प्रत्येक दिन पूजा-पाठ होता है। हिन्दू समाज के लिए मुगलसराय में अनेकों मन्दिर व मठ हैं जिसमें प्रमुख रूप से अलीनगर स्थित प्राचीन रामजानकी मन्दिर, स्टेशन परिसर में हनुमान मन्दिर, काली मन्दिर, बिछुआ मन्दिर, सेन्ट्रल कालोनी स्थित प्राचीन घोंघारी मन्दिर, राम मन्दिर, गौड़ीय मठ प्रमुख हैं। यहां वर्ष भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।


आर्य समाज मंदिर, मुगलसराय

मुगलसराय की धरती ने ही लाल बहादुर शास्त्री जी जैसे महान व्यक्तित्व को जन्म दिया। सरलता व सुचिता के प्रतिमूर्ति व भारत के द्वितीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी का जन्म सन् 02 अक्टूबर 1904 को रेलवे सेन्ट्रल कलोनी में हुआ था। स्वतंत्रता संग्राम सेेनानी डॉ0 रामप्रकाश शाह (85) बताते हैं कि ‘‘सेन्ट्रल कालोनी स्थित हनुमान मन्दिर परिसर के पास ही लाल बहादुर शास्त्री जी के नाना मुंशी हजारी लाल का मकान था जहां आपका जन्म हुआ था। आपके नाना रेलवे के बेसिक स्कूल में हेडमास्टर थें तथा पिता का साया बचपन में ही उठ जाने से आपका पालन-पोषण उन्ही ने किया। अब उस स्थान पर शास्त्री पार्क का निर्माण हो गया है।’’ लाल बहादुर शास्त्री जी हमेशा मूल्यों की राजनीति करते थें और पैबंद लगे कपड़े पहनते मगर अपने उसूलों से कभी समझौता नहीं करते थें। आपने ही जय जवान, जय किसान का अमर नारा दिया था।


जामुन का मज़ा ही कुछ और है

मुगलसराय में औद्योगिक क्रान्ति का आरम्भ सन् 1958.60 के दौरान रिहन्द बाँध से विद्युत उत्पादन के प्रारम्भ होने के साथ हुआ। इसके फलस्वरूप मुगलसराय व पड़ाव के बीच कल-कारखानों की स्थापना हुयी। द्वितीय पंचवर्षीय योजना में कार्वे समिति के स्थापना के बाद यहाँ कारखानों का विकास प्रारम्भ हुआ। जिनमें ग्रान्ट ट्रंक रोड के किनारे तथा रामनगर वाराणसी में विभिन्न कारखानों की स्थापना हुयी। इसके तहत सन् 1966 ई में इंडियन एयर गैस दुल्हीपुर, मुगलसराय में स्थापित हुयी। इसका प्रमुख उत्पादन एसीटीलीन, नाइट्रोजन व ऑक्सीजन गैस हैं जिनका इस्तमाल मुख्य रूप से अस्पतालों, रेलवे व उद्योगें अदि में किया जाता है। यहीं पर वायर एण्ड नेट इण्डस्ट्रीज भी कोलकाता मुख्यालय के सहयोग से स्थापित हुयी जिसमें तारें व जालों का निर्माण किया जाता है। इसमें उत्पादित तार व जाल टाटा, रेलवे समेत भारत के कई कम्पनियों को जाती हैं। सन् 1980 में जे0 जे0 आर0 इण्डस्ट्रीज की स्थापना हुयी जिसमें कच्चे माल को अच्छी तरह तैयार कर ऊनी कपड़ों का निर्माण किया जाता है। मुगलसराय के विकास में मील का पत्थर सन् 1960 ई. स्थापित हुआ जब इंडियल ऑयल कार्पोरेशन का मुख्यालय अलीनगर मुगलसराय में उद्घाटित हुयी। नगरपालिका परिषद का अलीनगर वार्ड जहाँ रोज सैकड़ों टैंकरों की लम्बी कतार लगती है इससे पहले विरान था। इंडियन ऑयल कारर्पोरेशन को बरौनी तेल शोधक कारखाने से बरौनी-कानपुर पाइप लाइन से तेल प्राप्त होता है जिसका वितरण पूर्वी उत्तर प्रदेश समेत नेपाल को भी होता है। इंडियन ऑयल कारर्पोरेशन का मुख्य रूप से दो कार्य है पहला पाइप लाइन का जिससे तेल प्राप्त होता है दूसरा मार्केटिंग डिविजन द्वारा इसका वितरण किया जाता है। मुगलसराय में नव धनाढ़यों की एक नयी प्रजाती को इस तेल के रंगीन खेल ने जन्म दिया है। इसकी सहायता से हजारों लोगों को रोजगार मिली है जिसमें कुछ लोग तेल का काला खेल खेलते हैं तथा कुछ मेहनतकश वर्ग है व कुछ ठीकेदार हैं। इस प्रकार इससे मुगलसराय के आस-पास के लोगों समेंत अन्य जगहों के लोगों के दो जून की रोटी मयस्सर हो जाती है।


मुगलसराय के दो किलोमीटर पश्चिम जाने पर एशिया की सबसे बड़ी चन्धासी कोयला मण्डी है जो कि काले हीरे का पड़ाव माना जाता है। मण्डी में प्रतिदिन ट्रकों का रेला लगा रहता है। सन् 1975 ई. में यहाँ स्थापित होने से पूर्व यह कोयला मण्डी मालवीय पुल के पास पड़ाव के पास स्थित था। सर्वेश्वरी कुष्ठ सेवा आश्रम के मरीजों के दिक्कत की वजह से इसे चन्धासी में स्थापित किया गया। एशिया के इस विशालतम कोयला मण्डी में प्रतिदिन बंगाल, झारखण्ड, बिहार, असोम व मध्य प्रदेश के कोयला खदानों से तकरीबन छः सौ ;600द्ध ट्रक कोयला आता है। सीजन के दौरान इसकी संख्या आठ सौ (800) ट्रक तक पहुँच जाता है। इस कोयला मण्डी ने आस-पास के गाँववासीयों समेत अन्य प्रदेश के हजारों लोगों को रोजगार प्रदान करती है। काले हीरे के कारोबार ने करोड़पतियों की एक लम्बी फेहरिशत तैयार की है। काले हीरे के इस कारोबार ने पूरे भारत के व्यापारियों की नजर अपनी तरफ खींचा है। मगर सन् 1980 .81 के बीच का समय चन्धासी कोयला मण्डी के लिए बेहद खराब गुजरा। माफियाओं की गिद्ध निगाह और प्रशासन की तिरछी नजर ने कारोबारीयों को हिला कर रख दिया। रंगदारी टैक्स की वजह से दूसरे प्रदेश के व्यापारियों ने अपने कारोबार को समेट दिया है। रंगदारी टैक्स की भेंट वाई0 के0 जैन, नन्द किशोर रूंगटा, आनन्द कुमार अग्रवाल समेत दर्जनों व्यापारी मौत की घाट चढ़ चुके हैं। विदित हो कि चार करोड़ रूपये वार्षिक राजस्व देने के बावजूद प्रशासन के छापों से यहाँ के व्यापारी तंग हो गयें जिससे कि एशिया की विशालतम कोयला मण्डी के कारोबार पर काफी विपरीत प्रभाव पड़ा है। इन सभी दिक्कतों के बाद भी एशिया की विशालतम चन्धासी कोयला मण्डी में काले हीरे की चमक बरकरार है।

प्राचीन रामजानकी मंदिर, अलीनगर-मुगलसराय

औद्योगिक विकास के लिए शिक्षा का होना अति आवश्यक है जिसके लिए मुगलसराय में सात इण्टर कालेज, एक केर्न्दीय विद्यालय, दो महाविद्यालय समेत दर्जनों कान्वेन्ट हैं। लाल बहादुर शास्त्रीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय मुगललसराय के उच्च श्क्षिा का रीढ़ है। चिकित्सा के लिए मुगलसराय में रेलवे के तीन हॉस्पीटल समेत अनेकों प्राइवेट चिकित्सालय है। व्यापारिक केन्द्र होने के नाते मुगलसराय में बैंको व ए0टी0एम0 का संजाल बिछा है। यहाँ पर सात विभिन्न राष्ट्रीकृत व उनके ए0टी0एम0 मौजूद हैं।
ग्रान्ट ट्रंक रोड के दोनों तरफ फैला मुगलसराय बाजार काफी विस्तृत है। प्रमुख रूप से सब्जी मण्डी, गल्ला मण्डी, मछली मण्डी व दूध मण्डी में खरीदारों व व्यापारियों की भीड़ देखी जा सकती है। आस-पास के गाँव के किसान समेत बिहार के कुछ व्यापारी मुगलसराय की मण्डी में अपने उत्पादों की खरीद व फरोखत के लिए प्रतिदिन आते हैं। शास्त्री कटरा व परमार कटरा स्थित शापिंग काम्पलेक्सों में खरीदारों की भीड़ देखी जा सकती है। मुगलसराय की जीवन शैली पूरी तरह से रेल पर आधारित है तथा यह शहर रेल के स्पंदन से धड़कता है।

विकलांगों का अजायबघर

धर्म की नगरी में विकलांगता का राज

  • एम अफसर खान सागर
कमला पटेल- ज़िन्दगी बे मकसद कट गई

सोनी शर्मा- माँ-बाप देख कर होजाते हैं निराश

वाराणसी को धर्म नगरी या भारत की सांस्कृतिक राजधानी के नाम से पूरा विश्व जानता है मगर लोग ये नहीं जानते कि यहां विकलांगों का अजायबघर भी है। हर तरह के विकलांग किसी का हाथ टेढा तो किसी का पैर तो कोई कमर के नीचे विकलांग तो कोई कैंचाकार। विश्व में शायद ही कोई गांव ऐसा होगा जहां बच्चों की पैदाइश पर खुशियाँ न मनाकर मातमपुर्सि किया जाता है। वजह साफ है कि लोगों को इन्तजार रहता है उनके बच्चों के विकलांग होने का। ग्रामवासियों को आजतक यह पता नहीं चल सका कि विकलांगता गांव के लिए बीमारी है या किसी सन्त फकीर का अभिशाप। तकरीबन पच्चास सालों से विकलांगता की दंश झेल रहे वाराणसी के दो गांव पूरे और हरसोस के लोगों की बीमारी का इलाज वाराणसी के महकमा-ए-सेहत के पास मौजूद नहीं हैं। जांचों से पता चले बीमारी के आगे उत्तर प्रदेश की महकमा-ए-सेहत लाचार और मजबूर नजर बाती है। तकरीबन दस हजार की आबादी वाले इन गावों में हर तीसरे घर का कोई न कोई सदस्य विकलांगता का शिकार है तथा दिन-ब-दिन विकलांगता अपना दायरा बढा रही है। बच्चों से लेकर बूढ़ों तक अपाहिज की जिन्दगी जी रहे हैं वो भी अन्य सदस्यों के रहमो करम पर।

रामधनी पटेल- कौन सुने मेरा दर्द

अनिल पटेल- कौन करेगा बेडा पार

जिला मुख्यालय से 33 किलोमीटर दूर सेवापूरी ब्लाक में वाराणसी-इलाहाबाद मार्ग पर एक गांव है पूरे तथा दूसरा गांव है हरसोस जो वाराणसी के अराजीलाइन ब्लाक का हिस्सा है। ये गांव पिछले पच्चास सालों से विकलांगता की मार झेलते-झेलते विकलांग गांव के नाम से मशहूर हो गये हैं। गांव में बच्चों की पैदाईश तो सामान्य होती है मगर 06 से 07 वर्श की उम्र तक जाते-जाते उनके पैर सूखने लगते हैं तथा वे विकलांग हो जाते हैं। गांव के बुजूर्गों को भी नहीं पता है कि यह बीमारी यहां कैसे पहुंची। राम सजीवन पटेल 36 बताते हैं कि ‘करीब पच्चास साल पहले रज्जू राम 67 और उनकी पत्नी जगपत्ती 61 के दोनों पैर खराब हुए थे। तब ग्रामवासीयों को इस बात का अन्दाज नहीं था कि गांववालों के माथे पर विकलांगता का तिलक लगने जा रहा है। गांव में अपाहिजों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। कुछ घर ऐसे हैं जहां पति-पत्नी अपाहिज हैं तो बच्चे स्वस्थ तो कुछ घरों में बच्चे अपाहिज तथा कई एक घर ऐसे हैं जहां पूरा परिवार ही विकलांगता का दंश झेल रहा है। अगर वाराणसी के महकमा-ए-सेहत के आंकडों पर गौर फरमायें तो पता चलता है कि पूरे गांव में 66 लोग विकलांगता के पात्र हैं तथा हरसोस गांव में 58 लोग विकलांग हैं जिनमें केवल 18-20 लोगों को सरकारी सुविधा के नाम पर विकलांग पेंशन मिलता है। जबकि असली चेहरा कहीं ज्यादा भयावहः है।

विकास और माया - भाई-बहन दोनों को विकलांगता ने मारा

अनीता - शादी को दूल्हा नहीं मिल रहा है


पूजा- मौत बेहतर है इस ज़िन्दगी से

विकलांगता के क्या वजह है अगर इसपर निगाह डालें तो तकरीबन दो साल पहले महकमा-ए-सेहत वाराणसी ने कैल्सियम की कमी व पानी का दूशित होना बताया था और कई बार कैम्प लगाकर कैल्सियम व आयरन की गोलियां भी बांटी गई मगर नतीजा सिफर रहा। फिर बी एच यू के विषेशज्ञयों की एक टीम बनी जिसमें न्यूारे सर्जन व आर्थोपेडिक सर्जन समेत अन्य डाक्टर थें जिन्होने पानी के पांच नमूनों की क्रास जांच कराया एक खुद बी एच यू से तथा दूसरी जल निगम लखनउ से ऐसा मुख्य चिकित्साधीकारी वाराणसी डॉ. आर.एस. वर्मा बताते हैं। मगर दोनों ही जांच रिर्पोट सामान्य आया। मुख्य चिकित्याधिकारी, वाराणसी डॉ.आर.एस. वर्मा बताते हैं कि ‘‘पानी के नमूने जो जांच हेतु गयें थे उसकी रिर्पोट सामान्य आयी है। फिर पोलियो फलोरेसिस और लैथरिज्म की जांच करायी गयी जिसकी रिर्पोट भी सामानय आयीं हैं। इसके बाद हमने बी एच यू की टीम से गहन अध्ययन कर इन विकलांगों की मसल्स बायोप्सी के लिए नमूना नेशनल इंस्टीट्यूट मेंटल हेल्थ एण्ड न्यूरो साइंस बैंगलोर भेजा गया जहां से इनको एडवांस मसकूलर डिस्ट्राफी नामक रोग होना बताया गया।’’ यह पूछे जाने पर की एडवांस मसकूलर डिस्ट्राफी क्या रोग है तथा इसका इलाज क्या है? तो मुख्य चिकित्याधिकारी, वाराणसी डॉ. आर.एस. वर्मा ने बताया कि इस रोग में मांसपेशियाँ कमजोर हो कर सिकुडने लगती हैं तथा धीरे-धीरे मरीज विकलांग होने लगता है। जहां तक इलाज का सवाल है तो अभी तक इस रोग का इलाज संभव नहीं हो पाया है। डा वर्मा ने आश्चर्य जताते हुए कहा कि मैंने अपने जीवन में इस तरह गांव का गांव रोगी नहीं देखा।’’

मुख्य चिकित्साधीकारी वाराणसी डॉ. आर.एस. वर्मा।

अगर हम सी.एम.ओ.साहब की माने तो एडवांस मसकूलर डिस्ट्राफी एक लाइलाज और भसंकर बीमारी है जिसका इलाज कम से कम बकौल मुख्य चिकित्याधिकारी, वाराणसी अभी तक संभव नहीं है। ऐसे में इन विकलांगों का जीवन यूं ही रेंगते-रेंगते कट जायेगा तथा ये समाज से कटे-कटे ही शमशान की राह कूच कर जायेंगे। हो सकता है कि आनेवाली इनकी नस्लें भी इस रोग से ग्रसित होकर खत्म हा जायें? आाखिर कैसे बचे इनका कुल? उस मरीज की मनोदशा के बारे में जरा सोचें जिसे ये बताया जाए कि मौत ही तुम्हारा इलाज है? कौन करेगा ऐसे लोगों से शादी जिसका पैर कब्र में लटका हो? तमाम अनुत्तरित सवाल लिये ये लोग यक्ष की तरह खडे हैं सरकार समाज व जनसेवको के इन्तजार में।


किशन और सूरज- भगवन मेरा क्या कसूर है

महिमा- ज़िन्दगी से पहले मौत का मंज़र

हरसोस के भग्गू राजभर, कल्लू मौर्या, लालदेही, कुमारी पूजा, अंकित, लालजी पटेल, दषमी, प्रियंका हों या पूरे के रामधनी, अरविन्द, अनन्त, वीरेन्द्र, शब्बो या मु0 सलीम इन सब की दर्द सिर्फ एक है विकलांगता। इस भयंकर बीमारी के बाबत पूछने पर लोग खामोशी अख्तियार कर लेते हैं। लोगों को डर इस बात का है कि खबर छपने पर गांव की जगहंसायी होगी। काफी कुरेदने के बाद पूरे गांव निवासी रामसजीवन पटेल बताते हैं कि ‘‘श्याम प्यारी पटेल ;72 को अज्ञात बीमारी ने अपने चपेट में ले लिया जिनका इलाज वाराणसी स्थित एक निजी चिकित्सालय में हो रहा था डाक्टर ने कहा कि अब ये ठीक नहीं होंगी। वहीं दूसरी तरफ अमीन की 20 वर्षीय बेटी शब्बो दोनों पैर से विकलांग है, जिसका इलाज अच्छे डॉक्टरों से कराया गया तथा बीस हजार से ज्यादा खर्च हुआ मगर वह ठीक नहीं हो पायी। धन के आभाव में अब इन्होने खुदा पर बेटी को छोड़ दिया है। अनिल पटेल 23 के दोनों पैर विकलांगता ने लील लिया। ट्राईसाइकिल व परिवार के लोगों के सहारे जिन्दगी किसी तरह बसर हो रही है। हरसोस और पूरे गांव में विकलांगता के साम्राज्य का पता इसी से लगाया जा सकता है कि रामबली पटेल तो ठीक है मगर उनके सात में पांच बच्चे विकलांग हैं। जिसमें अरविन्द 19 की चार वर्ष पूर्व व अनंत 16 की गत मई में मौत हो गयी। इसके अलावा सरिता 18 किशन 09 व सूरज 11 अभी भी इस अज्ञात बीमारी से जूझ रहे हैं। महिमा 07 को देख कर कोई यह बता ही नहीं पायेगा कि इसकी उम्र सात वर्ष है। इनके पिता जोखू बताते हैं कि ‘‘पैदाईश के दो वर्ष बाद ही इसे किसी अज्ञात बीमार ने जकड़ लिया। डाक्टरों को दिखाने पर पता चला कि इसकी मानसिक स्थित खराब है जो कभी ठीक नहीं हो सकती है।’’ ऐसे ही कैलाश पटेल की पत्नी बसन्ती 32, लड़की माया 16 व बेटा विकास 13 की के साथ ही अजय गुप्ता 14, वीरेन्द्र 15, अनिता 20, नीतू 16 इस भयंकर त्रासदी से लड़ रहे हैं। गांव की दर्द भरी दास्तां बताते हुए रामसजीवन पटेल रूआसें गले से कहते हैं कि ‘‘लड़को की तो छोड़िए बहन-बेटियों की शादी होने में काफी दिक्कतें आ रही हैं। गांव में लोग शादी करने से कतरा रहे हैं। अगर कहीं शादी की बात भी चल रही है तो विकलांगता की वजह से लोग मुकर जा रहे हैं।’’
विकलांगता से लोगों की जिन्दगी पहाड़ बन गयी है। दर्जनों लोग अपने पैरों पर खड़े नहीं हो सकते, परिजनों के प्यार और दुलार के भरोसे जिन्दगी की तवील सफर रेंग कर तय कर रहे हैं। मु0 सलीम (दुक्खू) 32 कमर से नीचे पूरी तरह विकलांग हैं और उसकी पत्नी सोना 29 भी विकलांग है इनको आसरा रहता है परिवार वालों का। सलीम बताते हैं कि ‘‘साहब फोटो खिंचवावे के खातिर गांव क लोग मना करे लन की ऐसे दूर-दूर तक खबर पहुंची आउर गांव क जग हंसायी होई। शादी-विवाह में अडचन पड़ी।’’ आगे सलीम कहते हैं कि ‘‘प्रधान जी कहते हैं की जेके विकलांग पेन्शन ह वोके लाल कार्ड ना मिली, साहब अब त हमहन क उपरे वाला मालिक बाडन।’’ इस बाबत ग्राम प्रधान ने बताया कि हमने शासन को काफी लिखा मगर शासन से कुछ सुविधायें ही नहीं मिल रही हैं। गांव के रामधनी पटेल 50 के दोनों पैर इस बीमारी से पूरी तरह सूख चुके हैं। इनको चलने-फिरने में ही नहीं वरन् नित कर्म में भी परिवार वालों के सहारे की जरूरत है। रामधनी बताते हैं कि ‘‘जब होश ना रहल तबै से विकलांग बाडी, कट रहल बा बाबू जी केहु तरह। आखीरी पड़ाव बा जीवन क, कबौ बुलावा आ सके ला।’’ सरकारी सुविधा के नाम पर चिढ़ कर कहते हैं कि ‘‘ जेकर भोले नाथ ही सब हर लेलन वोके कोई का देही। न डॉक्टर आवे लन ना ही मिनिस्टर, सब मउज मारत बा।’’ दूसरी तरफ कमला पटेल 49 सिर्फ इस आस पर जिये जा रहे हैं कि कभी तो शासन उन पर ध्यान देगी।

वीरेंद्र, अजय और शब्बो- विकलांगता ने बनाया तमाश


सलीम- खुद चलूँ या परिवार को खींचू

विकलांगों का अजायबघर पूरे गांव अपने विकलांगता के लेबल की वजह से समाज से कटा महसूस करता है। गांव में लोग रिश्ते के लिए नहीं तैयार हैं। जिसकी वजह से स्वस्थ और ठीक लोगों की भी शादी हो पानी मुश्किल है। गरीबी से जूझते लोगों के पास दो वक्त की रोटी जुटाना पहाड साबित हो रहा है, ये लोग इस भयंकर बीमारी का सामना कहो से कर सकते हैं। विकलांगता की वजह से नवजवानों में अवसाद को बढ़ावा मिल रहा है। जिससे कि पहले कुछ युवाओं ने आत्महत्या का प्रयास किया था मगर लोगों के समझाने पर वे किसी तरह माने। अनकरीब बह समय आ सकता है जब ग्रामीण कुण्ठा की भावनासे ग्रसित हो कर कोई गलत कदम उठा सकते हैं। इस भयंकर व लाइलाज बीमारी से वाराणसी का स्वास्थ महकमा हाथ तो खडा ही कर दिया है मगर अब जरूरत शासन और राजनेताओं की है कि पहल करके इन गावों के लोगों की बेहतरी की खातिर एक विशेष जांच दल बनाया जाए जिसमें देश - विदेश के डाक्टर व वैज्ञानिक शामिल हो जो इनके इलाज का कोई तरकीब निकाल सकें। वरना भारत की सांस्कृतिक राजधानी वाराणसी का अभिन्न अंग पूरे व हरसोस गांव भारत के माथे पर विकलांगता का कलंक बनकर उभरेगा तथा जिसकी जिम्मेदारी स्वास्थ विभाग के साथ हम सभी की होगी।

कैसे पीला होगा सब्बो, सोनी, माया, पूजा का हाथ

शब्बो, सोनी और माय- आखिर कौन थामेंगा इनका हाथ.

विकलांगता के स्याह अन्धेरे में फंसे पूरे व हरसोस गांव में उन युवका-युवतियों की शादियाँ होना दूभर हो गयी जिनके पैर इस बीमारी से सूख चुके हैं। जिन घरों में लड़कियां जवान हो चुकी हैं उनके माता-पिता को यह दर्द हमेशा सता रहा है कि वे अपनी लाड़ली के हाथ कैसे पीला करेंगे ? रिश्ता जुड़ने से पहले ही टूट जा रहा है। बार-बार रिश्ता टूटने से आजिज आकर कुछ परिवारों ने तो इन्हे जीवन भर पालने का इरादा पुख्ता कर लिया है। पूरे गांव में षादी का न होना आज ए गम्भीर समस्या बन चुकी है।
वाराणसी के पूरे व हरसोस गांव में अब तक सौ से ज्यादा लोग विकलांगता की बीमारी की चपेट में आ चुके हैं तथा दिन-ब-दिन इनके तायदाद में बढ़ोत्तरी होती जा रही है। खास बात यह है कि पूरे गांव से सटे डंगरीया, लच्छापुर, ठठारां, चित्रसेनपुर गांव के लोग पूरी तरह से स्वस्थ हैं। अमीन अंसारी ने बेटी सब्बो 20 वर्ष की शादी के लिए दिन-रात एक कर दिये मगर बात नहीं बनी। अब वो थक कर बैठ चुके हैं। किसी तरह परिवार को जिन्दा रखे हुए हैं। उन्होने यह आस भी छोड़ दिया है कि कोई उनकी बिटिया का हाथ भी थामेगा। सोनी शर्मा 19 दोनों पैर से विकलांग है तथा नवीं कक्षा की छात्रा है। पिता लोलारक शर्मा मुम्बई में सैलून चला कर किसी तरह परिवार का गुजर-बसर कर रहे हैं। मां मुनरावती देवी बताती हैं कि पैरसे कमर तक सोनी का शरीर बेजान है। इस हालत में कौन उससे शादी करने को तैयार होगा। बस आखिरी इच्छा यही है कि पढा-लिख कर वह कुछ काबिल हो जाये ताकि उसें जीवन का अन्धकार मिट सके।
लउधर अपनी बेटी कान्ति की शादी न कर परने के दुःख से फफक पडता है। कान्ति दोनों पैर से लंगड़ी है। भाई ज्वाला कहता है कि पांच साल पहले एक विकलांग लड़के से शादी तय हुई थी, लड़के वालों ने भारी-भरकम दहेज की मांग की जिसकी वजह से रिष्ता नहीं तय हो पाया। जिसे दो वक्त की रोटी के लिए हाड़-तोड़ मेहनत करना पड़े वह इतना दहेज कहां से लायेगा।
अनिल पटेल 22 शादी न होने की वजह से एक बार जान देने की कोशिश कर चुका है। खरपत्तू बेटे की शादी के लिए लगातार कोशिश कर रहे हैं मगर लंगड़े को कौन लड़की देगा। दोनो पैरों से विकलांग शाहिद 23 वर्ष के पिता निजाउद्दीन तो विकलांग लड़की ढूंढ़ कर थक चुके। जावेद अंसारी 21 वर्ष स्नातक का छात्र है। बड़े भाई आफताब अंसारी ने बताया कि हमारी मंशा है कि हम जावेद को पढ़ा कर इस काबिल बना दें कि लोग खुद उसके भाई के लिउ रिश्ता लेकर आयें।
पूरे गांव में विकलांगता ने लोगों के चेहरों से हंसी छीन ली है। शादी तो दूर की बात है इनसे लोग मिलना भी नहीं पसन्द करते हैं। ऐसे हालात में इनके लड़के व लड़कीयों के हाथ कैसे पीले होंगे ? यह प्रश्न इनको हमेशा सालता रहता है।

Tuesday, February 22, 2011

शहरनामा

सामाजिक सौहार्द व गुप्तकालीन स्वर्णयुग का शहर - सैदपुर

  • एम अफसर खान सागर


गाजी बाबा का माजर, सैदपुर

गंगा नदी के तट पर बसा सैदपुर भारत की सांस्कृतिक राजधानी काशी (वाराणसी) से 43 किमी0 पूरब में स्थित है। गौरवशाली गुप्तकालीन इतिहास की गवाह यह नगरी अपने धार्मिक पहचान के लिए विख्यात है। सिद्ध ऋषियों की तपोभूमि और महान मुगल प्रशासक सैय्यद शाह की कर्मस्थली के रूप में चिन्हित सैदपुर अपने सामाजिक और सांस्कृतिक एकता के लिए विख्यात है। सन् 1942 के स्वतन्त्रता आन्दोलन की गवाह यह भूमि अनेक आन्दोलनों का दंश झेला है। रजवाड़ी हवाई अड्डा फूँकने से लेकर कचहरी पर झण्डारोहड की गवाह यह धरती भारत के गौरवशाली इतिहास का प्रतीक है।


शेख सम्मान बाबा का माजर ऊपर और प्राचीन कलि मंदिर नीचे

सैदपुर का प्राचीन नाम सिद्धपुरी या सैय्यदपुर था इसपर लोगों का अपना मत है। स्थानीय निवासी सुरेन्द्र प्रताप यादव ने बताया कि सिद्ध ऋषियों की कर्मस्थली रहने के कारण इसे सिद्धपुरी के नाम से जाना जाता था जिसका परिवर्तित नाम आज सैदपुर है जबकि स्थानीय मुगल प्रशासक सैय्यद शाह के नाम पर इसे सैय्यदपुरी के नाम से जाना जाता है जिसका प्रमाण स्थनीय रेलवे स्टेशन का बोर्ड है जिस पर सैय्यदपुर ही लिखा है।


रंग महल मंदिर ऊपर और दाता साहब का माजर नीचे, सैदपुर

धार्मिक सौहार्द के लिए जाना जाने वाला यह शहर अपने गोद में अनेकों ऐतिहासिक विरासत सम्हाले हुए है। माँ गंगा के तट पर स्थित परमहंस आश्रम रंग महल महान ऋषियों की तपोस्थली रहा है। अपने घोर तपस्या से ऋाषियों ने इसे सिद्धपुरी का नाम दिया तथा समाज को नया दिशा देने का काम किया है। मुगलकालीन समय में यह स्थल मुगल प्रशासक के रंग महल या आमोद-प्रमोद केन्द्र के रूप में प्रयुक्त होता था। मगर समय के बदलाव से इसका भाग्य भी बदला और ऋषियों की तपोस्थली के रूप में विख्यात हुआ। परमहंस आश्रम के महन्त महर्षि चन्द्रानन्द सरस्वती ने बताया कि कभी-कभी निर्माण के वास्ते खुदायी के दौरान मोटी दीवाले मिलती हैं जिससे कि यह सिद्ध होता है कि पहले यहाँ महल रहा होगा। महर्षि चन्द्रानन्द सरस्वती ने एक वाकये का जिक्र करते हुए कहा कि एक रात मैं आश्रम में मुख्य भवन पर सो रहा था तभी मुझे थूकने की जरूरत महसूस हुआ मैं लेटे ही थूक दिया जिसपर अचानक एक दुबले पतले महात्मा जैसे व्यक्ति का दर्षन हुआ तथा उन्होने मुझसे क्या कहा मैं कुछ समझ पाने में असमर्थ था। इससे यह सिद्ध होता है कि रंग महल आश्रम में ऋषियों की आत्मायें आराम करती हैं। परमहंस आश्रम रंगमहल में उत्तरी तरफ स्वामी परमहंस जी का मन्दिर है जहाँ पुर्वी उत्तर प्रदेश समेत बिहार से श्रद्धालु दर्शन-पुजन वास्ते हमेशा आते हैं। आश्रम में प्रत्येक वर्ष सद्गुरू समर्थ स्वामी परमहंस जी महाराज के महानिर्वाण दिवस अश्विन मास कृश्ण पक्ष की दशवीं तिथि को भव्य समारोह का आयोजन होता है, जिसमें हजारों की संख्या में भक्त भाग लेते हैं। रंगमहल के उत्तर दिषा में दादा साहिब की मजार स्थित है लोग इन्हे दाता साहब के नाम से जानते हैं लोगों का मत है कि इनके दरबार से कोई खाली हाथ नहीं जाता है।

गंगा नदी के किनारे बूढ़े महादेव मंदिर ऊपर और टाउन नेशनल कॉलेज नीचे

टाउन नेशनल इण्टर कालेज सैदपुर की शिक्षा का आधार स्तम्भ है। शिक्षा के उच्च प्रतिमान को समेटे यह विद्यालय क्षेत्र के लोगों के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराता है। इसकी स्थापना स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आत्माराम पांडे ने 1946 मे किया था। टाउन नेशनल इण्टर कालेज के पूरब तरफ ही रंगमहल मन्दिर व परमहंस आश्रम स्थित है। इसके मुख्य द्वार से पश्चिम तरफ बाबा साहिब की मजार स्थित है । स्थानीय नागरिक सुरेन्द्र प्रताप यादव का मानना है कि पुर्व में यह स्थान मुगल बादशाह के निवास के रूप मे प्रयुक्त होता रहा होगा। एक खास बात यह है कि टाउन नेशनल इण्टर कालेज के की्रड़ा मैदान पर ही प्रत्येक वर्ष सुशीला देवी क्रिकेट प्रतियोगिता होता है जिसमें राष्ट्रीय व राज्य स्तर के क्रिकेट खिलाड़ी व फिल्म कलाकार आते है ।

सैदपुर का सब्जी मण्डी और नदी पर बना पीपा पुल और गंगा नै पर बनता पक्का पुल नीचे
सैदपुर स्थित सब्जी मण्ड़ी से वाराणसी, बिहार व अन्य जगहों के लिये सब्जीयाँ भेजी जाती है। यहाँ सस्ती व अच्छी सब्जियाँ मिलती हैं। हर प्रकार के फल व सब्जियों के प्रसिद्ध सैदपुर सब्जी मण्डी अपने तरफ बरबस ही ग्राहकों को आकर्षित करती है। सैदपुर स्थित गंगा नदी पर बना पीपा का पुल चन्दौली व गाजीपुर जनपद को जोड़ता है। प्रत्येक वर्ष अक्टुबर माह से जून माह तक रहता है जिससे कि दोनों जनपदों के व्यापारीयों समेत आम नागरिकों को जोड़ने का काम करता है। पीपा पुल से व्यापर को काफी लाभ मिलता है इसके सहारे छोटे व्यापरी व किसान आसानी से गंगा नदी को लांघ कर अपनी उगायी सब्जीयों को बेच लेते हैं। ठीक इसी के बगल से गंगा नदी पर सेतु बनाने का कार्य विगत आठ वर्षों से काफी कच्छप गति से चल रहा है। हाल यह है कि सन् 2000 से जारी यह कार्य केवल कुछ अर्धनिर्मित खम्भे ही खड़ा कर पाया है। विगत चार तीन वर्ष धनाभाव के चलते काम रूक गया था। इस पुल के बन जाने से दोनों जिलों की दूरीयां सिमट जायेगी। गंगा घाट पर ही बूढ़े महादेव की विशाल मन्दिर है। गंगा घाट से स्नान कर भक्त बाबा के दर्शन-पूजन करते हैं। इनके बारे में कहा जाता है कि जब विश्वामित्र जी श्रीराम व लक्ष्मण जी के साथ ताड़ूका वध के लिए जा रहे थें तो सैदपुर में ही गंगा घाट पर एक दिन का प्रवास किया था तभी बूढ़े महादेव की स्थापना की थी। इसी लिए लोग इनकी उत्पत्ती पृथ्वी से मानते हैं। यहाँ पर रामनवमी के दिन मेले का आयोजन होता है जिसमें भक्त इनका अभिषेक व पूजन-अर्चन का भव्य कार्यक्रम करते हैं।
बूढ़े महादेव से मात्र पाँच सौ मीटर की दूरी पर शेख सम्मन बाबा की मजार स्थित है। धार्मिक सौहार्द की नगरी में एक अनुठी मिशाल है शेख सम्मन बाबा की मजार है, यहाँ पर रामनवमी के ठीक बाद उर्स का आयोजन किया जाता है। शेख सम्मन बाबा के बारे में स्थानीय बूजुर्ग जमाल अहमद बताते हैं कि ‘‘एक ब्राह्मण दम्पत्ति को संतान नहीं थे वे काफी निराष थें तभी कहीं से एक फकीर का गुजरना उधर से हुआ उन्होने फकीर से अपनी व्यथा सुनायी। तब फकीर ने उस ब्राह्मण दम्पत्ति को आर्शीवाद दिया और कहा कि जा तुम्हे आठ संतान होंगे मगर मुझे तुम्हारा आठवां संतान चाहिए। ऐसा ही हुआ और समय बीतता गया तब एक दिन अचानक उस फकीर का गुजरना उधर से हुआ और फकीर ने वादा के मुताबिक ब्राह्मण दम्पत्ति से पुत्र माँगा मगर उन्होने लड़के को छिपा दिया जिसपर फकीर ने आवाज लगाया कि चल रे सम्मना और बालक फकीर के पीछे चल पड़ा। सम्मन के माने आठवां होता है। आगे जाकर बालक बहुत बड़ा फकीर बना।’’ सम्मन बाबा के बारे प्रचलित है कि एक बार कोई राजा कोढ़ की बीमारी से पीड़ीत था हर जगह से थक कर काशी में देह त्यागने की इच्छा रख कर नाव से काशी जा रहा था कि रात के समय नाविक को आग की जरूरत हुई और नाविक ने नाव नदी के किनारे लगाया तो देखा कि एक फकीर अपनी साधना में लिप्त है आग जल रहा है। नाविक फकीर के तेज से प्रभवित हो कर राजा से उससे मिलने को कहा राजा ने न चाहते हुए भी नाविक के बात पर फकीर के सामने जा कर अपनी व्यथा कहने लगा तब उन्होने राजा को पास पड़ी राख उठा कर दिया और कहा कि जा इसे लगाना। राजा को पहले विश्वास न हुआ मगर उसने बाबा के कहे के अनुसार किया और कोढ़ मुक्त हो गया। सम्मन बाबा के बार में अनेक किस्से प्रचलित है।
सैदपुर तहसील के पास ही माँ काली की मन्दिर है जहाँ हर समय लोगों की भीड़ दर्शन-पूजन के लिए जमा रहती है। लोग इनको जीवित देवी के रूप में पूजते हैं। नवरात्र के दिनो में देवी पूजन के समय भक्तों का रेला लगा रहता है। स्थानीय नागरिक सुरेन्द्र प्रताप यादव ने बताया कि प्रज्ञा पुरूश श्री आनन्द प्रभु जी जो कि अभी जीवित हैं गाय घाट पर तपस्या करते थें तथा रोजाना माँ काली की पूजा किया करते थें एक बार आपको माता ने साक्षात दर्शन दिया था। सैदपुर स्थित वन बिहार लोगों के लिए शान्ति स्थल का काम करता है। यह पार्क बच्चों के लिए मनोरंजन का केन्द्र है। इसमें नाना प्रकार के वृक्ष हैं तथा शान्त स्थल पर्यावरण को सिंचित करता शहर के लिए शुद्ध हवा उपलब्ध कराता है।


सैदपुर भीतरी में स्कंदगुप्त का विजय स्तम्भ

सैदपुर से 6 किमी0 पूर्वोत्तर की दिशा में स्थित भीतरी गाँव गुप्तकालीन इतिहास के स्वर्णयुग का गवाह है। यहाँ गाजी बाबा की मजार स्थित है। इनके बारे में कहा जाता है कि इन्ही के नाम पर गाजीपुर जनपद का नाम पड़ा है। भीतरी में ही बुद्ध शताब्दी लाट स्थित है। भीतरी में ही गुप्त सम्राट स्कंदगुप्त ने मध्य एषिया के हुडों को हराने के बाद विजय स्तम्भ व विजय लाट का निर्माण करवाया था। खुरदरी लाल पत्थर पर बना यह स्तम्भ 28 फीट उँचा तथा जमीन से उपर 10 फिट तक का भाग वर्गाकार तथा शेष भाग वृत्ताकार है। इसका उपरी हिस्सा घण्टानुमा है। इसपर विकसित कमल की अधोमुखी पंखुड़ियां अंकित हैं। इस वृत्ताकार स्तम्भ का व्यास 2 फुट 3 इंच है। इस स्तम्भ के उपर एक गोल चौकी पर एक सिंह की आकृति बनी थी जिसका अब कोई चिन्ह शेष नहीं है। स्तम्भ के नीचे अंकित शिलालेख अब समाप्त प्राय हो चुका है। गाजीपुर गजेटियर के अनुसार यह प्रस्तर स्तम्भ जो कभी एक किले के अन्दर स्थित था वर्तमान में किले के भागानावशेष एवं भूगर्भ स्थित एक विषाल कक्ष को साकार करती ईंटों की खण्डित प्राचीर के पास खुले आकाश में खण्डित रूप में विद्यमान है। इस स्तम्भ के बगल में घण्टानुमा एक कक्ष स्थित है जो गुप्तकालीन स्वर्णयुग की याद दिलाती है। स्तम्भ के पास ही खुदायी में विशाल कक्ष मिला है जिसका जीर्णोद्धार भारत सरकार के सौजन्य से किया जा रहा है। ऐसी अनेकों ऐतिहासिक विरासत सम्हाले सैदपुर भारतीय इतिहास में अपना उच्च स्थान रखता है। सामाजिक सौहार्द की यह नगरी सामाजिक ताना बाना को एक सुत्र में पिरोने का काम करती है।